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पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/२९

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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

पात्रों को उभारता था जिससे चित्र में एक विलक्षणता आ जाती थी । ऐसे चित्र में पात्र का रूप बिलकुल साफ नहीं दिखाई पड़ता । कभी-कभी पात्र अँधेरे में पड़ जाता है । यही हाल खिलाडियों के चित्र का भी हुआ । ग्यारह खेलाड़ियों में से कुछ का जो प्रकाश में थे, रूप साफ-साफ था तथा पहचाना जाता था, पर अँधेरे में पड़े खिलाड़ियों का रूप धमिल था और पहचान में नहीं पाता था । ऐसे खेलाड़ियों ने चित्र को नापसन्द कर दिया । रेम्ब्रां कुछ न बोला, और चाकू से उस बड़े चित्र को टुकड़े-टुकड़े कर डाला । पेशगी ली हुई रकम वापस करके खेलाड़ियों को बाहर कर दरवाजा बन्द कर लिया । ऐसे समय में रेम्ब्रां अगर कहे कि--'कला कला के लिए है' तो क्या अनुचित है ?

कलाकार, दार्शनिक या वैज्ञानिक समाज के उपयोगी अंग हैं । यह तो आज कोई नहीं कह सकता कि कला, दर्शन या विज्ञान के आविष्कार ने समाज को लाभ नहीं पहुँचाया; परन्तु आज भी कलाकार, वैज्ञानिक तथा दार्शनिक का स्थान समाज में निराला होता है । इनका जीवन प्रायः अधिक सामाजिक नहीं हो पाता । साधारण लोग इनके गुणों तथा कार्यों से अपने समय में परिचित नहीं हो पाते और यही कारण है कि इन विभूतियों का सामाजिक जीवन कष्टप्रद हो जाता है । फिर भी समाज इनको भविष्य में ऊँचा स्थान देता है और इनसे समाज का कल्याण होता है ।