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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

उसका एकमात्र कार्य था । उसे धर्म का दास समझना चाहिए । चित्रकला धर्म की सीमा में दौड़ लगाती रही और वह उससे मुक्त न हो पायी । जो मुक्त नहीं वह कला नहीं कुछ और है, कम से कम उसे ललितकला में स्थान नहीं मिल सकता । उस समय चित्रकार पहले धार्मिक होता था, फिर चित्रकार । उस समय चित्रकला का कार्य धार्मिक भावों का यथातथ्य चित्रण करना था और यह काम उन चित्रकारों ने यत्नपूर्वक किया, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु उन्होंने जो कुछ किया कला की दृष्टि से, विशेषतः प्राधुनिक कलाकार की विचारधारा से संदेहास्पद है ।

उस समय चित्रकार आज से कुछ अधिक प्रसन्न था, क्योंकि वह धर्म के प्रचार का एक मुख्य अंग था, इसलिए धार्मिक-समाज उसको एक उच्च स्थान देता था । उसके जीवन के सभी साधनों और आवश्यकताओं की पूर्ति करता था । वह अन्नजल से परिपूर्ण था । अतः उसने अत्यन्त उत्कृष्ट कला का निर्माण किया जो आज भी हमें अजन्ता, एलोरा, एलिफैण्टा इत्यादि में देखने को मिल जाती है ।

मध्यकालीन युग में मुगल तथा राजपूत चित्रकला ने भी अपना स्वर्ण-युग देखा । मुगल सम्राटों, नवाबों के मनोरंजन और विलासिता का वह साधन बनी । यह उनको क्षणिक पिपासा की पूर्ति का साधन थी । उस समय भी चित्रकार आज से अधिक प्रसन्न और सुखी था । कहना न होगा कि वह एक दास था और अपने भाग्य को कोसता रहता था ।

तत्पश्चात् अंग्रेजों ने भारत को स्वर्ण-युग प्रदान किया । वह कैसा था, यह हम सबने अपनी आँखों से देखा है और उसकी छाया आज भी हमारे चारों ओर से हटी नहीं है । आज के चित्रकारों ने भी यह युग देखा है और उनकी आँखों पर उसका प्रमाण अंकित है । चित्रकार राजा रविवर्मा इस स्वर्णयुग के प्रवर्तक थे और डा० अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट ने इसकी अन्त्येष्टि क्रिया की । इस प्रकार के स्वर्ण-युग की कल्पना से भी आज का चित्रकार दूर भागना चाहता है । यह है संक्षिप्त रूप से आज के चित्रकार का मनोविज्ञान ।

आज का चित्रकार स्वतंत्र भारत में साँस ले रहा है । आज वह परिस्थितिवश कला में उससे कहीं अधिक स्वतंत्रता का आभास पा रहा है । यदि हम आज के चित्रकार की परिस्थितियों का विश्लेषण करें तो ज्ञात होगा कि चित्रकार आज जितना मुक्त है, पहले कभी न था । आज वह धर्म के प्रपंचों से मुक्त है । राजा-महाराजाओं, सम्राटों, नवाबों की ठकुर-सुहाती से मुक्त है और समाज के बंधनों से भी मुक्त है । समाज को आज अवकाश नहीं है कि चित्रकार की ओर ध्यान दे सके या उसे जीविका प्रदान कर सके । आज चित्र-