फिर मिट्टी का रूप दे देता है, विध्वंस करता है और पुनः उस मिट्टी को लेकर सावधानी के साथ अपनी काल्पनिक प्रतिमा निर्मित करता है । प्रत्येक कलाकार इस प्रकार के विध्वंस या प्रलय का मूल्य जानता है और समय आने पर उसका उपयोग करता है ।
आज चित्रकार यह जानता है कि उसकी कला का मूल्य समाज में कुछ नहीं, पर उसे अपना कर्त्तव्य करना ही है । जिस प्रकार प्रकृति का कार्य नहीं रुकता, उसी प्रकार कलाकार का कार्य रुकना नहीं जानता । वह रचना करता जाता है, भले ही उसे उसका मूल्य न मिले और समाज उसकी कला का आदर न करे । जब तक समाज कला का आदर करता है, तब तक कलाकार समाज का भी आदर करता है, परन्तु जब समाज की आँख पर पर्दा पड़ जाता है या पुतलियाँ ज्योति-हीन हो जाती हैं तो कला का सर्वप्रथम कार्य होता है उन ज्योति-हीन पुतलियों को नष्ट कर उनके स्थान पर नयी पुतलियाँ बैठाना और उन पर पड़े पर्दे को काटकर पुनः उन्हें ज्योतिर्मय बनाना । आधुनिक कला ने जो सूक्ष्म रूप अपनाया है उसका कारण यही है कि वह एक बार समाज की आँखों की खोयी ज्योति वापस ला सके । यह समय की पुकार है, इसकी आवश्यकता है ।
यूरोप में पिकासो इस सूक्ष्म-कला का प्रवर्तक है और उसके हजारों अनुयायी हैं जो निरंतर बढ़ते जा रहे हैं । यूरोप में सभी आधुनिक कलाकार सूक्ष्म-चित्रण में भाग ले रहे हैं । भारत में भी इस कला का प्रचार हो रहा है । सूक्ष्म चित्रकला में कलाकार प्रकृति की रचना का रहस्य समझने का प्रयत्न करता है और उसी खोज के आधार पर, उसी से प्रेरणा लेकर स्वयं रचना करता है । प्रकृति में नाना प्रकार के रूप, आकार तथा वस्तुएँ पायी जाती है जो अगणित हैं । प्रकृति के जिन रूपों को तथा वस्तुओं को मनुष्य उपयोगी समझता है उनका नामकरण कर देता है । किन्तु अभी करोड़ों ऐसे रूप तथा वस्तुएँ प्रकृति में बिखरी पड़ी हैं और निरंतर नये-नये रूप बनते जा रहे हैं, जिनको न अभी मनुष्य जान सका है, न कल्पना ही कर सका है और न उनका नाम ही जानता है । इसी प्रकार सूक्ष्म चित्रकार भी प्रकृति की भाँति सरल रचनात्मक प्रवृत्ति से प्रभावित होकर रचना करता है, नये-नये रूपों, आकारों तथा वस्तुओं को, जिनकों पहचाना नहीं जा सकता । उनका रूप सूक्ष्म तथा नया होता है । देखने में इन चित्रों में अजीब-अजीब रहस्यपूर्ण रूप दिखाई पड़ते हैं, जिनको स्वयं चित्रकार भी नहीं पहचान सकता, फिर भी चित्रों को देखकर मन में अनेकों प्रकार के भाव उमड़ पड़ते हैं । दर्शक के मन में, चित्र देखकर, अनायास जिज्ञासा उत्पन्न होती है, जो प्राचीन चित्रों को देखकर साधारण दर्शक के मन में कभी नहीं उठती थी, और यही आधुनिक सूक्ष्म-चित्र की सफलता है कि एक बार पुनः साधारण दर्शक चित्रों से प्रभावित हो रहा है और उनको