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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

है । यह उसका एक गुण है । कला में भी मनुष्य की चेतन रचनाओं या संयोजन का सबसे अधिक महत्त्व है । इस प्रकार चित्रकला में हम रूप संयोजन के सिद्धान्तों को सीखते हैं । इन सिद्धान्तों को सीखकर हम चित्रों का संयोजन तो करते ही हैं, पर इनका उपयोग उन सभी स्थानों पर हो सकता है, जहाँ रूप संयोजन करना होता है । यह घर में हमें, घर की वस्तुओं का प्रबन्ध करना सिखाता है, अपने शरीर के वस्त्रों का प्रबन्ध करना, समाज के व्यक्तियों का प्रबन्ध करना सिखाता है । इस प्रकार कला के सिद्धान्तों के द्वारा हम अपने जीवन से सम्बन्धित प्रत्येक वस्तु का संयोजन कर सकते हैं और अपना जीवन आनन्दमय बना सकते हैं ।

संयोजन का ही दूसरा नाम रचना या निर्माण भी है । कलाओं के द्वारा हम अपने में चेतन निर्माणकारी वृत्ति उत्पन्न करते हैं । वही मनुष्य कला के पथ पर अग्रसर हो सकता है जिसमें निर्माणकारक या सृष्टिकारक प्रवृत्ति का अंश अधिक होता है । कला में निर्माण का जो कार्य होता है वह केवल बुद्धि से ही नहीं होता । उसके साथ हमारी भावनाओं, मनोवेगों का भी योग होता है । अर्थात् कला के निर्माण में प्रेम की आवश्यकता होती है । हम अपनी रचना को प्रेम करते हैं, उसके साथ हार्दिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं । जिस वस्तु या भावना को हम चित्रित करना चाहते हैं, उसका निर्माण करने से पहले उसका हमें आदर करना पड़ता है, उस वस्तु के जीवन में प्रवेश करना पड़ता है, उसके साथ हृदय बाँधना पड़ता है, उस वस्तु की भावनाओं में डूबना-उतराना पड़ता है और तब वह वस्तु सहोदर हो जाती है । इस प्रकार कलाओं को प्रत्येक वस्तु से प्रेम करना सीखना पड़ता है । मान लीजिए चित्रकार घृणा को चित्रित करना चाहे तो पहले घृणा से उसे प्रेम करना होगा । तब ही उसे वह चित्रित कर सकता है । उससे दूर रहकर या घृणा को घृणा की दृष्टि से देखकर वह उसके समीप नहीं पहुँच सकता, न उसे चित्रित ही कर सकता है । कला हमें प्रेम करना सिखाती है, ध्वंस की भावना से हमे बचाये रहती है । कलाकार वृत्तिवाला मनुष्य सृष्टि की प्रत्येक वस्तु से प्रेम करता है । कला हमें प्रेम का पाठ सिखाती है और समाज में कला का प्रचार कर हम प्रेम का प्रचार कर सकते हैं । हिरोशिमा में एटम बम का नग्न ताण्डव न हुआ होता यदि मनुष्य का हृदय कलाकार का हृदय होता । कला आपस के कलह का एक मात्र उपचार है । यदि प्रत्येक व्यक्ति निर्माण के कार्य में रत हो तो झगड़े या आपस में कलह का प्रश्न ही नहीं उठता । उसे इस दिशा में सोचने का समय ही न होगा, इनकी ओर वह दृष्टिपात भी न कर सकेगा । कला हमें शान्ति, प्रेम तथा एकता के सुन्दर बन्धन में बाँध देगी ।