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पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/५४

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कला और समाज

वत्ति को हम कल्याणकारी न समझें और इसका निरादर करें, पर बात सही है। हम इस पर विचार कर सकते हैं कि ऐसा क्यों, और इसका उत्तर भी सरलता से जान सकते हैं, परन्तु कलाकार की रुचि का महत्त्व हम कम नहीं कर सकते। साधारणतया हमें अपनी रुचि तथा कलाकार की रुचि में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है, परन्तु इसी भिन्नता में जब हम एकता खोज पाते हैं तभी हमें प्रानन्द होता है, यद्यपि ऐसा हम कम ही कर पाते हैं।

वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति की रुचि भिन्न हो सकती है, पर कलाकार की रुचि में हम भिन्नता पाने पर उसे असाधारण समझते हैं, उसकी रुचि का निरादर भी करने को उद्यत हो जाते है। यही है द्योतक हमारे विकृत समाज की मनोवृत्ति का। किसी कला-कृति के सम्मुख होने पर हम प्रश्न करते हैं ऐसा क्यों? और बस खत्म हो गया उसका आनन्द। अधिक से अधिक हम उस कलाकार की मनोवृत्ति तथा उसके विचारों को समझने की चेष्टा कर लेते हैं पर फिर भी हमारी और उ की रुचि में भिन्नता रह ही जाती है और कला के आनन्द से हम वंचित रह जाते हैं।

जिस प्रकार समाज कलाकार की रुचि की अवहेलना नहीं कर सकता, उसी प्रकार कलाकार समाज की रुचि की अवहेलना नहीं कर सकता। कला का कार्य अभिव्यक्ति है, और उसका भी उपयोग है, इसलिए जिनके लिए इसका उपयोग है, उनकी मनोवृत्ति और रुचि को समझना भी कलाकार के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

व्यक्ति की रुचि का इतना महत्त्व है कि इसी से उसका व्यवहार तथा प्राचरण बदल जाता है, या भिन्न प्रकार का हो जाता है। इस रुचि का आधार क्या है, यही एक विचारणीय प्रश्न है।

कुछ विद्वानों का मत है कि रुचि भी अन्य सहज शक्तियों की भाँति मनुष्य में जन्मजात पैदा हो जाती है। अर्थात् यह कहना कि रुचि हम बनाते हैं, निराधार है। रुचि हम बनाते नहीं बल्कि पाते हैं। अगर यह मान भी लिया जाय तो भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि प्रारम्भ में जैसे ही बालक पैदा होता है उसके सम्मुख निर्मित एक अजीब वातावरण उपस्थित हो जाता है, जिसका प्रभाव पारम्भ से ही उस पर पड़ता है, और वही उसकी रुचि को ढालता है। जिस प्रकार पिघले मोम को साँचे में डालने से मोम का एक दूसरा रूप बन जाता है, उसी प्रकार जीव समाज के वातावरण में पलकर उसी के अनुसार ढलने लग जाता है। अर्थात् मनुष्य के जीवन में उसका वातावरण बहुत ही असर रखता है। जैसा वातावरण मिलता है वैसी ही प्रकृति या रुचि मनुष्य की बन जाती है। ऐसा अक्सर देखा गया है कि भेड़िया या कोई जंगली जानवर मनुष्य के एक अल्पायु शिशु को उठा ले गया और उसे अपने बच्चों के बीच छोड़ दिया और वह उसी वातावरण में पला और बड़ा हुआ। ऐसे