हैं। अगर छोटी नदियाँ आ-आकर बड़ी नदी में न मिलें तो बड़ी नदी उस तेजी से आगे नहीं बढ़ सकती जैसा कि उसे बढ़ना चाहिए।
जीने की कला के अन्तर्गत संसार के सभी साधन आ जाते हैं। दर्शन, विज्ञान, कला, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, धर्म, शिक्षा, स्वास्थ्य-शिक्षा और दूसरी सभी विद्याएँ हैं। जीने की कला का लक्ष्य है सुख या आनन्द की प्राप्ति और यही लक्ष्य और सभी कलाओं का है।
मनुष्य के इतिहास की ओर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि सबसे पहले मनुष्य को इसी की चिन्ता हुई होगी कि वह सुखपूर्वक कैसे रह सकता है। सबसे पहले उसे अपनी सुरक्षा का ध्यान हुआ होगा जिसमें भूख पहली, दूसरी शरीर की रक्षा, तीसरी कुटुम्ब-निर्माण या समाज-निर्माण की लालसा। भूख के लिए अच्छे प्रकार के सुख और आनन्द देनेवाले खाद्य पदार्थों की खोज, शरीर की रक्षा के लिए सुख देनेवाले वस्त्रों, शस्त्रों, औषधियों की खोज, समाज-निर्माण के लिए सुख देनेवाले व्यवहारों की खोज, और सुख देनेवाली अनेकों वस्तुओं के निर्माण की धुन—यही प्रारम्भ से उसके जीवन का लक्ष्य रहा है। इसी के सुखदायक निर्वाह को हम जीवन की कला कहते हैं। सुख की प्राप्ति सुख देनेवाले ढंगों की खोज किये बिना नहीं हो सकती। अर्थात् सुख पाने के लिए कुछ नियम हो सकते हैं। इसलिए जो भी काम करना है उसे नियमित ढंग से ही करने में सुख की प्राप्ति होगी। जब हम किसी काम को नियमित ढंग से करते हैं तब हमें सुख मिलता है। जिस काम के करने में हमें सुख मिलता है उसी में हमें सौन्दर्य का दर्शन होता है। या हम यों कह सकते हैं, सुन्दरतापूर्वक कोई काम करने में हमें सुख मिलता है। इसलिए यदि हम किसी भी काम के करने में सुख की इच्छा करते हैं तो उसे सुन्दरतापूर्वक करना चाहिए। चित्रकला का ज्ञान हमें प्रत्येक कार्य को सुन्दरतापूर्वक करना सिखाता है। जीवन में यदि हम हर काम को सुन्दरतापूर्वक करें तो हमें सुख मिलेगा और यही सुख की प्राप्ति जीवन की कला का लक्ष्य है। इस तरह जीवन की कला में चित्रकला का कितना महान् योग है, यह बिलकुल स्पष्ट है। चित्र कला का ज्ञान प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है यदि वह अपने जीवन को सुखी बनाना चाहता है।
चित्रकला के विद्यार्थी का पहिला काम होता है प्रकृति निरीक्षण। चित्र बनाने से पहले उसे प्रकृति को देखना-सीखना पड़ता है। हर समय, चलते, उठते, बैठते, उसे अपने चारों ओर की वस्तुओं को रुचिपूर्वक देखना पड़ता है। प्रकृति की सुन्दरता का अध्ययन करना पड़ता है और प्रकृति का यह अध्ययन उसे जीवन पर्यन्त करना पड़ता है। प्रकृति अनन्त है,