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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

 

रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव

लाल रंग हृदय में शक्ति पैदा करता है। इसे देखने से शरीर में एक तरह की धड़कन और हलका कम्पन पैदा होता है और चित्तवृत्ति में एक तरंग पैदा हो जाती है। शरीर की पेशियों में खिचाव-सा आने लगता है, खून का दौरा बढ़ जाता है और सांस जल्दी-जल्दी चलने लगती है। सुर्ख लाल रंग या टूनी गुलनार-सा रंग मन को चुस्त, जोशीला तथा तेज बना देता है । मनुष्य के मन पर इससे अधिक गहरा प्रभाव और किसी दूसरे रंग का नहीं होता। इसलिए चित्र में लाल रंग का प्रयोग बहुत सोच-समझ कर करना चाहिए।

लाल रंग से देशभक्ति और धार्मिक अनुराग पैदा होता है। इस रंग से कभी-कभी गर्मी, हलचल, खुशी, आनन्द, सुख और इन्द्रियोत्तेजन होता है। लाल रंग देखने में सबसे अधिक गाढ़ा, आँख को सबसे जल्द दिखाई पड़नेवाला, जोशीला, भड़कीला होता है। इसीलिए यह भय का द्योतक भी है। लाल रंग कभी-कभी क्रोध, क्रूरता, दयाहीनता, कठोरता, कुटिलता, निर्दयता का भी प्रभाव डालता है। इससे लालच, इन्द्रियलोलुपता, काम, यातना, घृणा और ध्वंस की भावना भी पैदा होती है। लाल रंग अधिक देखते रहने से मनुष्य की चित्तवृत्ति अपने काबू में नहीं रहती।

अब नारंगी रंग को लीजिए। इसमें एक तरह की हलकी गर्मी होती है, जो बहुत उष्ण या तीक्ष्ण नहीं होती, परन्तु सहने लायक मुलायम और मातदिल होती है। यह रंग बल-वर्धन करता है। इससे जीवन तथा शक्ति का संचार होता है । मध्यम श्रेणी का नारंगी रंग सांसारिकता की ओर घसीटता है और कभी-कभी सड़न तथा गंदगी का भी द्योतक होता है। पीला रंग ज्योति का द्योतक है। इसको देखने से मन में ज्ञान और प्रकाश का भास होता है। इसका प्रभाव सीधे मस्तिष्क पर पड़ता है और भावों को प्रेरित करता है तथा पारलौकिकता की ओर मन को ले जाता है। बुद्धि को प्रखर करता है। पीला रंग सबसे स्वच्छ और प्रकाशमय होता है। इससे पवित्रता, ज्ञान तथा धार्मिकता का बोध होता है। इसलिए धार्मिक मनुष्य पीला रंग-पसन्द करते हैं। ईश्वर, देवी-देवताओं को अधिकतर पीला वस्त्र ही पहनाया जाता है। पीले रंग से मन का पाप, अधर्म, अशान्ति तथा रोग भागते हैं। पीले रंग से रक्त-संचार में गति उत्पन्न होती है जिससे बदनमें स्फूर्ति आती है। परन्तु गन्दा पीला रंग मनुष्य को अधर्मी तथा डरपोक बनाता है।

अब हरे रंग की बारी आती है। हरा रंग शीतलता, स्फूर्ति तथा पुनर्जीवन की ज्योति