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पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/९६

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चित्रकला

जी बैठे हुए हैं और मुरली बजा रहे हैं। इस चित्र में उपवन को बहुत महत्त्व दिया गया है और सबसे बड़ा कृष्ण को बनाया गया है। इस चित्र को हम ‘कृष्ण की मुरली’ शीर्षक नहीं दे सकते, क्योंकि यहाँ मुरली से अधिक महत्त्व कृष्ण को दिया गया है और कृष्ण के पास मुरली तो सदैव रहती ही है। इस चित्र को हम ‘कृष्ण’ कह सकते हैं और इसलिए यह हमारा सही संयोजन नहीं कहा जायगा।

दूसरा चित्र ऐसा है जिसमें केवल एक मुरली बनी हुई है। इसको देखकर यह तो कहा ही नहीं जा सकता कि यह कृष्ण की मुरली का चित्र है।

तीसरे चित्र में एक मुरली बनी हुई है जिसके पास एक मोर का पंख पड़ा हुआ है और चित्र में इन्हीं दोनों वस्तुओं को प्रधानता दी गयी है। यह चित्र कृष्ण की मुरली का यथार्थ चित्र होगा तथा यह संयोजन सही कहा जायगा। मुरली के समीप मोरपंख देखकर कृष्ण की मुरली का ज्ञान भी हो जाता है और मुरली की प्रधानता भी रहती है।

इसलिए चित्र बनाते समय हमें यह सदैव समझ लेना चाहिए कि कौन-सी वस्तुएँ चित्र का मुख्य विषय हैं और कौन-सी गौण।

दूसरी बात जो हमें सम्बन्धित अनुपात के विषय में जाननी चाहिए, यह है कि एक दिये हुए क्षेत्र में किसी वस्तु को हम किस स्थान पर रखें कि उस वस्तु का और उस क्षेत्र का एक रुचिकर सम्बन्ध हो। मान लीजिए एक वृत्त को एक वर्ग के भीतर इस तरह से रखना है कि वह रुचिकर हो। यदि उसको समवर्ग के ठीक मध्य में रख दिया जाय तो चारों दिशाओं में समानान्तर स्थान खाली रहेगा और देखने में वह चित्र बिलकुल प्रभावहीन होगा। जैसे रात में यदि चन्द्रमा बिलकुल सिर पर उगे तो वह देखने में बहत रुचिकर नहीं लगता। उसी प्रकार यदि चन्द्रमा सारे आकाश में कहीं दृष्टिगोचर न होकर प्राकाश के किसी एक कोने में दृष्टिगोचर हो तो वह पृथ्वी से इतना समीप रहता है कि वह पृथ्वी की वस्तुओं का ही एक अंग-सा मालूम पड़ने लगता है और उसका सौन्दर्य पूरी तरह निखारने में पृथ्वी की वस्तुएँ बाधक-सी हो जाती हैं। परन्तु यदि चन्द्रमा आकाश में देखनेवाले की दृष्टि से लगभग ६० अक्षांश के ऊपर निकले तो वह सबसे अधिक रुचिकर प्रतीत होता है, क्योंकि उसका और पृथ्वी का ऐसा सम्बन्ध हो जाता है कि अपने स्थान पर पृथ्वी और चाँद दोनों ही सुन्दर लगने लगते हैं। यह बात आप स्वयं भी अनुभव कर सकते हैं।

इसी प्रकार समवर्ग के भीतर यदि वृत्त को कोने में रख दिया जाय तो शेष स्थान का वृत्त से सम्बन्ध बहुत ही असन्तुलित हो जायगा और उन दोनों वस्तुनों में कुछ भी एकता