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शौच जल शेष पाय, भूतहू विशेष कोऊ, बोल्यो सुख मानि, हनुमान जू बताये हैं
रामायन कथा, सो रसायन है कानन कों, आवत प्रथम, पाछे जात, घृणा छाये हैं॥
जाइ पहिचानि, संग चले उर आनि, आये वन मध्य, जानि, धाइ, र्पाव लपिटाये हैं।
करैं तिसकार, कही “सकोगे न टारि, मैं तो जाने रस-सार” रूप धरयो जैसे गाये हैं॥२॥

“माँगि लीजै बर” कही दीजै “राम भूप रूप, अति ही अनूप, नित-नैन अभिलाखिए।”
किए लै संकेत, वाही दिन ही सो लाग्यो हेत, आई सोई समै चेत “कबि छवि चाखिए॥”
आये रघुनाथ, साथ लक्ष्मण, चढ़े घोड़े, पटरङ्गबोरे हरे, कैसे मन राखिए।
पाछे हनुमान आय बोले “देखे प्रानप्यारे” “नेकु न निहारे मैं तो भले फेरि भाखिए॥३॥”

हत्या करि विग्र एक, तीरथ करत आयो, कहै मुख “राम, भिक्षा डारिए हत्यारे को।”
सुनि अभिशम नाम धाम में बुलाय लियो दियो लै प्रसाद कियो शुद्ध गायो प्यारे को॥
भई द्विज-सभा कहि बोलि के पठायो आप “कैसे गयो पाप, संग लैकै जेंये न्यारे को।”
पोथी तुम बाँचो, हिये भाव नाहिं साँचो, अजू ताते मतिकाँचो, दूरि करै अंध्यारे को॥४॥

देखी पोथी बांचि, नाम महिमा हू कही साँच, “ए पै हत्या करै कैसे तरै कहि दीजिए।”
“आवै जो प्रतीत कहो” कही “याके हाथ जेवैं जब शिवजू के बैल तव पंगति में लीजिए॥”
थार में प्रसाद दियो, चले तहाँ पान कियो, बोले “आप नाम के प्रताप मति भीजिए।
जैसी तुम जानौ तैसी कैसे के बखानो हो,” सुनि कै प्रसन्न पायो जै जै धुनि रीझिए॥५॥

आये निशि चोर, चोरी करन, हरन धन, देखे श्यामघन हाथ चाप-सर लिये हैं।
जब-जब आवैं, न साधु डरपावैं, एतो अति मँखरावैं, ए पै बली दूरि किये हैं।
भोर आये पूँँछे “अजू! साँवरो किशोर कान?” सुनिकर मौन रहै, आँसु डारि दिये हैं।
दई सब लुटाय, जानी चौकी रामराय दई, लई सन दिक्षा, शिक्षा शुद्ध भये हिये हैं॥६॥

कियो तनु विप्र त्याग, लागि चली संग तिया, दूर ही तें देखि कियो चरन प्रनाम है।
बौले यों “सुहागवती,” “मरयो पति होहुँ सती” “अब तो निकस गई जाहु सेवो राम है।”
बोलि के कुटुम्ब कही “जो पै भक्ति करौ सही” गही तब बात जीव दियो अभिराम है।
भये सब साधु, न्याधि मेटी लै बिमुखताकी, जाकी वास रहै तो न सूझे श्याम धाम है॥७॥

दिल्लीपति बादशाह अहदी पठप लेन ताकों, सो सुनायो सूबै विप्र ज्यायो जानिए।
देखिबे कों चाहै नीके सुख सो निबाहे, आय कही बहु विनय गही चले मन आनिए ।
पहुँचे नृपति पास, आदर प्रकाश कियो, दियो उच्च आसन लै, बोल्यो मृदु बानिए।
“दीजै करामाति जगख्यात सब मात किए” कही “भूठी बात, एक राम पहिचानिए॥८॥”