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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१९४

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अकबर
१३९
 

दलहि चलत हलहलत भूमि थल थल जिमि चल दल।
पल पल खल खलभलत बिकल बाला कर कुल कल।
जब पटहध्वनि युद्ध धुंधु धुद्धुव धुद्धुव हुव।
अरर अरर फटि दरकि गिरत धसमसति धुकन ध्रुव।
भनि गंग प्रबल महि चलत दल जहँगीर शाह तुव भार तल।
फुं फुं फनिन्द्र फन फुंकरत सहस गाल उगिलत गरल॥१४॥
मृगनैनी की पीठ पै वेनी लसै सुख साज सनेह समोर रही।
सुचि चीकनी चारुचुभी चित मैं भरि भौन भरी खुशबोइ रही।
कविगं गजुयाउपमाजो किये लखि सूरति ता श्रुति गोइ रही।
मनो कंचनके कदलीदल पै अति साँवरी साँपिन सोइ रहो॥१५॥
मन घायल पायल मायल ह्वै गढ़ लेकने दूरि निसंक गयो।
तहँ रूप नदी त्रिबली तरि कै करि साहस सागर पार भयो।
कवि गंग भनै बटवार मनोज रुमावलि सों ठग संग लयो।
परि दोऊ सुमेरु के बीच मनोभव मेरो मुसाफिर लूट लये॥१६॥


 


अकबर

मुगल सम्राट अकबर का जन्म सं॰ १५९९ में, अमरकोट में हुआ। १६६२ वि॰ तक इन्होंने राज किया। यद्यपि ये विशेष पढ़े लिखे न थे, परन्तु कवियोँ और पंडितों की संगति का इन्हें बड़ा चाव था। सत्संग के प्रभाव से ये स्वयं कविता भी करने लगे थे। इनके दरबार में अच्छे अच्छे कवि और पण्डित रहते थे।

इनका रचा कोई ग्रन्थ नहीं मिलता, कहीं कहीं फुटकर छंद मिलते हैं। इनके कुछ छंद नमूने के तौर पर नीचे लिखे जाते हैं—