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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२९२

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कुलपति
२३७
 

इनकी कविता के कुछ उदाहरण नीचे दिये जाते हैं:—

डर बेधत पानिप हरत मुक्ता जनि बिलखाय।
नकि वास लहि है गुनी दे अंधरन सिर पाये॥

दान बिन धनी सनमान बिन गुनी ऐसे विष बिन फनी
अनी सूर न सहत हैं। मंत्र बिन भूप ऐसे जल बिन कूप जैसे
लाज बिन कामिनि के गुननि कहते हैं। वैद बिन यज्ञ जप
जोग मन बस बिन ज्ञान बिन योगी मनं ऐसे निबहत हैं।
चंद बिन निशा प्राण प्यारी अनुराग बिन सील बिन लोचन
ज्यों सोभा को लहत हैं॥

दिसि पूरि प्रभा करिकै दसहू गुन कोकन के अति मोद लहै।
रँगि राखी रसा रंग कुंकुम के अलि गुंजत ते जैस पुंज कहै।
निसि एक ह्वै पंकज की पतनीन के वाके हिये अनुराग रहै।
मनो याही ते सूरज प्रात समै नित आवत है अरुनाई लहै॥

नीति बिना न बिराजत राज न राजत नीति जु धर्म बिना है।
फीको लगै बिन साहस रूपरु लाज बिना कुल की अबला है।
सूर के हाथ बिना हथियार गयंद बिना दरबार न भा है।
मान बिना कविता की न ओप है दान बिना जस पावौ कहा है॥