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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३००

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सबल सिंह चौहान
२४५
 

अभिमनु घेरे आय सब मारत अस्त्र अनेक
जिमि मृगगण के यूथ महँ डरत न केहरि एक॥

लैके शूल कियो परिहारा बीर अनेक खेत महँ मारा
जूझी अनी भभरि के भागे हँसिके द्रोण कहन अस लागे
धन्यधन्य अभिमनु गुण आगर सब क्षत्रिन मह बड़ो उजागर
धन्य सहोद्रा जग में जाई ऐसे बीर जठर जनमाई
धन्य धन्य जग में पितु पारथ अभिमनु धन्य धन्य पुरुषारथ
एक बीर लाखन दल मारे अरु अनेक राजा संहारे
धनु काटे शंका नहि मनमें रुधिर प्रवाह चलत सब तनमें
यहि अनन्तर बोले कुरु राजा धनुष नाहिं भाजत केहिकाजा
एक बीर को सबै डरत हैं घेरि क्यों न रथ धाय धरत हैं
बालक देखु करी यह करणी सेना जूझि परी सब धरणी

दुर्योधन या विधि कह्यों कर्ण द्रोण सों बैन।
बालक सब सेना बधी तुम सब देखत नैन॥

यह कहि कै दुर्योधन आये शब्द बीर आगे ह्वै धाये
क्षत्री घेरो अभिमनु रन में मानहुँ रवि आच्छादित घन में
लै के खड्ग फरो गहि हाथा काट्यो बहु क्षत्रिन को माथा
अभिमनु धाइ खड्ग परिहारे सम्मुख ज्यहि पावै त्यहि मारे
भूरिश्रवा वाण दश छाँटे कुँवर हाथ को खङ्गहि काटे
तीन वाण सारथि उर मारै आठ वाण तें अश्व सँहारे
सारथि जूझि गिरे मैदाना अभिमनु बीर चित्त अनुमाना
यहि अन्तर सेना सब धाये मारु मारु कै मारन आये
रथको खैंच्चि कुँवर कर लीन्हे ताते मारु भयानक कीन्हे
अभिमनु कोपि खम्भ परिहारे यक यक घाष बीर सब मारे

अर्जुन सुत इमि मारु किय महाबीर परचण्ड।
रूप भयानक देखियतु जिमि यम लीन्हे दण्ड॥