४
प्रान बिहीन के पाइ पलोटि अकेले ह्वै जाइ घने बन रोयो।
आरसी अंध के आगे घरयो बहिरो को मतौ करि उत्तर जोयो॥
ऊसर में बरस्यो बहु बारि पखान के ऊपर पङ्कज बोयो।
दास वृथा जिन साहिब सूम की सेवनि मैं अपनो दिन खोयो॥
५
द्गग नासा न तौ तप जाल खगी, न सुगंध सनेह के ख्याल खगो।
श्रुति जीहा बिरागै न रागै पगी मति रामैं रँगी औ न कामैरँगी॥
तप में व्रत नेम न पूरन प्रेम न भूति जगी न बिभूति जगी।
जग जन्भ वृथा तिनको जिनके गरे सेली लगी न नवेली लगौ॥
६
कंज सकोच गड़े रहे कीच में मीनन बोरि दियौ दह नीरन।
दास कहैं मृगहू को उदास कै बास दियो है अरन्य गंभीरन॥
आपुस में उपमा उपमेय ह्वै नैन य निंदित हैं कबि धीरन।
खंजनहूँ को उड़ाय दियो हलुके करि डारे अनंग के तोरन॥
७
नैनन को तरसैये कहाँ लौं कहाँ लौं हिये बिरहागि में तैये।
एक घरी न कहूँ कल पैये कहाँ लगि प्रानन को कलपैये॥
आवै यही अब जी में विचार सखी चलु सौतिहुँ के घर जैये।
मनन घटे ते कहा घटिहै जु पै प्रानपियारे को देखन पैये॥