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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/३९२

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ग्वाल
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मोरन के सोरन की नेकौ न मरोर रही घोरहूँ रही न घन
घने या फरद की। अंबर अमल सर सरिता विमल भल पंक
को न अंक औ न उड़नि गरद की॥ ग्वाल कवि चित मैं
चकोरन के चैन भये पंथिन की दूर भई दूखन दरद की॥
जल पर थल पर महल अचल पर चाँदी सी चमकि रही
चाँदनी सरद की॥१०॥

झर झर झाँपैं बड़े दर दर ढाँपैं नापैं तऊ काँपैं था
थर बाजत बतीसी जाइ। फेर पसमीनन के चौहरे गलीचन
पै सेज मखमली सौरि सोऊ सरदी सी जाइ॥ ग्वाल कवि
कहैं मृगमद के धुकाये धूम ओढ़ि ओढ़ि छार भार आगहू
छपीसी जाइ। छाकै सुरा सीसीहू न सीसी पै मिटैगी कभू
जौंलीं उकसीसी छाती छाती सों न मीसी जाइ॥११॥

ईरषा की सैन लिये कलिजुग भूप आयो झूँठ के नगारे
सो बजत दिनरात हैं। काम क्रोध लोभ मोह तेग तीर धनु
नेजा अदया अखंड तोप चंड घहरात हैं॥ ग्वाल कवि गब्बर
गसीले गोल गोला चलै टोला फूर बचनों के पूर लहरात हैं।
हूजियो हुस्यार यार साँच के मवासे माँहिँ पाप की पताका
आसमान फहरात है॥१२॥

देखो कलिजू के राजनीति को तमासो यह बासो कियो
आय हर एक की अकल पै। खानदान वारे पानदान लिये
दौरत हैं तान गान बारे बैठे जोवत महल पै॥ ग्वाल कवि
कहैं चारु चतुरन को चैन है न ऐस में रहत लैस कूर चढ़े बल
पै। मलमल धारे जे वै धूर रहे मल मल मल खानवारे सोवैं
सेज मखमल पै॥१३॥

जाकी खूब खूबी खूब खूबन कै खूबी इहाँ ताकी खूब खूबी
खूब खूबी नभ गाहना। जाकी बदजाती बद‌जाती रहाँ चारन

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