कवि पजनेस केलि मधुप निकेत नव
दर मुख दिव्य घरी घटिका लटीकी है।
विधु पर बेष चक्र चक्र रचिरथ चक्र
गोमती के चक्र चक्रताकृत घटीकी है॥
नीची तट त्रियली बली पै दुति कोसतुण्ड
कुंडली कलित लोमलतिका बुटीकी है।
उपटीकी टीकी प्रभाटीकी बधूटी की
नाभिटीकी धुर्जटी की औकुटी की सम्पुटीकी है॥३॥
संपुट सरोज कैधों सोभा के सरोवर में
लसत सिंगार के निसान अधिकारी के।
कवि पजनेस लोल चित्त बित्त चोरिबे को
चोर इकठौर नारि ग्रीव वरकारी के॥
मन्दिर मनोज के ललित कुम्भ कंचन के
कलित फलित कैधों श्रीफल बिहारी के।
उरज उठौना चकचाकन के छौना
कैधों मदन खिलौना ये सलौना प्रान प्यारी के॥४॥
मानसी पूजा मई पजनेस मलेछन हीन करी ठकुराई।
रोके उदोत सबै सुर गोत बसेरन पै सिकराली बसाई॥
जानि परै न कला कछु आज की काहे सखी अजया इक ल्याई।
पोखे मराल कहो किहि कारन ऐरी भुजंगिनी क्यों पोसवाई॥५॥
पजनेस तसदुदुक़ता बिसमिल जुलफ़े फुरकत न कबूल कसे।
महबूब चुनाँ मदमस्त सनम् अज़दस्त अलावल जुल्फ़ बसे॥
मज़सूये न क़ाफ़ सफ़ाक़ रुए सम क्य़ामत चश्म से खूँबरसे॥
मिजगाँ सुरमा तहरीर दुत्ताँ नुक़ते बिन थे किन ते फिन से॥६॥