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कविवचनसुधा।


करकस नानि करी कर निदरति है ॥ सोभित सुभग कोऊ चोप घन कर तेरे जघन जुगुल मनि कण्ठ जो हरत है । भाय की उतारी कैधौं सोभा साचे ढारी छवि कनक के कदली की बदली परति है ॥ ५० ॥

कोमलता कंज सौ गुलाब सों सुगन्ध लै के इन्दु सो प्रकार लीन्हों उदित उजेरो है । रूप रति-आनन सुचातुरी सुजानन में नीर लै निबानन सों कौतुक निवारो है ॥ कहै कवि ठाकुर मसाला विधि कारीगर रचना निहारि को न होत चित चेरो है । कंजन को रङ्ग ले सवाद लै सुधा को बसुधा को मुग्ध लुटि बनायो मुख तेरो है ॥ ५१॥

सवैया ।

खजन के दृग के मद गमन अंजन राजमि ये सरमी।

आनन की छबि आनन में चतुरानन कानन में जु सभी ।।

जोग करै तिय की उपमा अब को महिमा बरने बकसी।

सिन्धु मथ्यो तब चन्द कढ्यो जब चन्द मथ्यो तब तू निकसी||५२।

एक समै बलि राधिका कृष्णजू कलि किये जल मे सुग्न पाये।

चीर में अङ्ग रह्यो लपटाय बढी उपमा छबि देत दिवाये ।।

हरी दरियायी की कंचुकी में कुच की उपमा कवि देत बताये ।

बाज के त्रास मनो चकवा जलजात के पात में गात छिपाये।।५३।।

कवित्त ।

शील की छमा है अनिमा है द्विज दीनन की सुजम् नमा २