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कृत
सगुन पदारथ अर्थयुत, सुबरनमय सुभसाज।
कंठमाल ज्यो कविप्रिया, कंठ करो कविराज॥
श्री लक्ष्मीनिधि चतुर्वेदी, एम॰ ए॰
साहित्यरत्न, शास्त्री, हिन्दी प्रभाकर, कविरत्न
आचार्य
मधुसूदन-विद्यालय-इण्टर कालेज,
सुलतानपुर
प्रकाशक
द्वितीयबार]सन् १९६६[मूल्य ५)