जल-क्रीडा के वर्णन मे तालाब, कमल, सुन्दर शोभा, प्रियतम से हृदय से हृदय मिलाकर गोता लगाने, गिरे हुए गहनो को नीचे तक पहुँचने के पहले पकडने तथा जलचरा की भाति जल मे क्रीडा करने का वर्णन करना चाहिए।
उदाहरण
कवित्त
एक दमयन्ती ऐसी हरै, हँसि हँस बस,
एक हसिनी सी बिसहार हिय रोहिये।
भूषण गिरत एक लेत बूड़ि बीचि बीच,
मीन गति लीन, हीन उपमान टोहिए॥
एकै मत कै कै कंठ लागि बूड़ि बूड़ि जात,
जल देवता सी दृग-देवता विमोहिये।
'केशोदास' आस-पास भँवर भँवत जल-
केलि मे जलज मुखी जलज सी सोहिये॥३७॥
'केशवदास' कहते है कि जल-क्रीड़ा मे कमल-मुखी सुन्दरियाँ कमल के समान सुशोभित हो रही है। उनमे से कोई दमयन्ती के समान हसती हुई हस के बच्चो को पकडने दौडती है, किसी हसिनी जैसी सुन्दरी के गले मे मृणाल का हार सुशोभित हो रहा है। कोई गिरे हुए गहनो को, लहरो मे गोता लगाकर निकाल लेती है। उसकी चचलता के आगे मछली की गति भी कुछ नहीं है अत उसकी उपमा खोजना ब्यर्य है। कुछ आपस मे सलाह करके, पानी मे गले तक डूब जाती है, वे जल-देवता जैसी प्रतीत होती हैं और जिन्हे देखकर नेत्र विमोहित हो जाते है। उनके आस-पास भँवरचक्कर काटते है।