र भी वामलोचन से हीन है-आदि परस्पर विरोधी अर्थों का आभास होता है, परन्तु जब ऊपर लिखा हुआ वास्तविक अर्थ निकल आता है, तब विरोध चला जाता है, इसलिए यह 'विरोधाभास' कहलाता है, क्योकि इसमे 'विरोध' का आभास मात्र रहता है, वास्तविक विरोध नहीं ] ५-विशेष दोहा साधन कारण विकल जहें होय साव्य की सिद्धि । 'केशवदास' बखानिये, सो विशेष परसिद्धि ॥२४॥ 'केशवदास' कहते है कि जहाँ पर ( कार्य को सम्पन्न करने वाला) साधन अर्थात् कारण के अपूर्ण रहने पर भी साध्य ( कार्य । की सिद्धि हो जाय, वहाँ पर विशेष अलकार होता है। उदाहरण (१) सवैया सॉपको ककण, माल कपाल, जटानि की जूटि रही जटि प्रांत । खाल पुरानी पुरानोई बैल, सुौरकी और कहै विष मात ॥ पारवती पति सपति देखि, कहै यह केशव सभ्रम तातै । आपुन मांगत भीख भिखारिन देत, दई मुंह मागी कहांत ॥२५॥ उनके पास साप का ककण और कपोलो की माला रहती है तथा वह जटाये धोरण किये हुए रहते हैं। (मारे भूख के ) उनकी आँते पेट मे चिपटी रहती है। पुरानी खाल ओढते है, एक पुराना बैल उनके पास है, और विष खाये हुए की तरह और की और बातें किया करते है। 'केशवदास' कहते है कि पार्वती पति को यह सपत्ति देखकर मुझे भ्रम होता है, इसीलिए कहता हूँ कि वह स्वय तो भीख मांगते है और भिखारियो को मुहमॉगी भीख कहाँ से दे देते है ?
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