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उदाहरण-१

कवित्त

सुन्दर ललित गति, बलित सुबास अति,
सरस सुवृत्त मति मेरे मन मानी है।
अमल अदूषित, सू भूषननि भूषित,
सुवरण, हरनमन, सुर सुखदानी है।
अंग अंग ही को भाव, गूढ भाव के प्रभाव,
जानै को सुभाव रूप रुचि पहिचानी है।
'केशोदास' देवी कोऊ देखी तुम? नाही राज,
प्रगट प्रवीन राय जू की यह बानी है॥८२॥

वह सुन्दर है, ललित गति वलित (सुन्दर चाल वाली या सुन्दर रागिनी बोलने वाली) है, सुबास (सुन्दर वस्त्र वाली अथवा सुंगध युक्त मुखवाली) है, अति रसीली है, सुवृत्त मति (सुन्दर चरित्र तथा बुद्धि वाली अथवा सुन्दर छन्दो मे बुद्धि लगाने वाली) है, और मेरे मन को अच्छी लगती है। वह निर्मल है, अदूषित (दोष रहित) है, सुभूषन भूषित (अच्छे गहनो से सजी हुई अथवा अलङ्कार युक्त) है, सुवरण (अच्छे रङ्गवाली अथवा सुन्दर अक्षरो वाली) है, वह मन हरने वाली है, और सुर सुखदायिनी (देवताओ को सुख देने वाली अथवा स्वरो को सुख देने वाली है। उसके अङ्ग-अङ्ग से हृदय का (गूढ अथवा दिव्य) भाव प्रकट होता है। उसके गूढ भाव के प्रभाव को (दूसरो के मन की बात को जानने के गुण को अथवा व्यंग्य भरे भेद को) कौन जान सकता है? मैं तो उसे रूप और रुचि से पहचानता हूँ। 'केशवदास' कहते है कि राजा इन्द्रजीत मुझसे पूछने लगे कि 'तुमने क्या कोई देवी देखी है, जिसका वर्णन कर रहे हो? मैने कहा नहीं राजन्! मै तो प्रवीणराय की वाणी का प्रत्यक्ष वर्णन कर रहा हूँ।