पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३५७

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( ३३६ ) अथ पर्वतबन्ध चित्र सवैया यामय रागेसुतौ हितचौरटी काम मनोहर है अभया । मीत अमीतनिको दुख देत दयाल कहावत हीन दया । सत्य कहो कहा झूठ मे पावत देखो वेई जिन रेखी कया। यामे जे तुम मीत सवै ससवैस तमीमत गेयमया ॥७॥ अथ सर्वतोमुखचित्र को मूल सवैया काम, अरै, तन, लाज, मरै, कब, मानि, लिये, रति, गान, गहै, रुख । बाम, वरै,गम, साज, करै, अब, कानि, किये, पति, आन, दहै, दुख ॥ समया [ भय E जाना NAL छ कबा fr जात्रा सर्वतोमुरवचित्र ER माग Dr