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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/८२

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जिस प्रकार चचल भौंरा लता रूपी ललनाओ के प्रति घूमता रहता है और जैसे स्थल पर खजन तथा जहाँ जल होता है, वहाँ मछली चचलता धारण करती है, उसी प्रकार कृष्ण का स्नेह चचल है। वह सपने के समान होता है और अपनाने पर भी अपना नहीं होता इस लिए उनके आक के फल के समान नीरस बचनो मे न भूल जाना। हे सखी! उसका कौन सा गुण ग्रहण किया जाय? केवल देखती रह, कहना कुछ नहीं। वह रूप और मोह का महल है। उनका प्रेम बिजली की चमक की भाँति चारो ओर शोभित होता है और पीपल के पत्ते के समान चचल है।

१२--सुखदवर्णन

दोहा

पण्डित पूत, पतिव्रता, विद्या, वपुष निरोग।
सुखदा फल अभिलाप के, सपति, मित्र सँयोग॥२८॥
दान, मान, धन योग, जप, राग बाग, गृह रूप।
सुकृति सौम्य सरवज्ञता, ये सुखदानि अनूप॥२९॥

पण्डित-पुत्र पतिब्रता स्त्री, विद्या, नीरोग शरीर, अभिलाषा के अनुसार मिलनेवाला फल-सपत्ति मित्र मिलन, दान, मान और धन प्राप्ति का अवसर, जप, राग, वाग, गृह, रूप पुण्य, सौम्य स्वभाव और सर्वज्ञता सुख देने वाले माने जाते है।

उदाहरण

सवैया

पण्डितपूत सपूत सुधी, पतिनी पतिप्रेम परायण भारी।
जानै सबै गुण, मानै सबै जन, दानविधान दयाउरधारी॥
केशव रोग नहीं सों वियोग, सॅयोग सुभोगनि सों सुखकारी।
सांच कहै, जगमहिं लहैं यश, मुक्ति यहै चहुँवेद विचारी॥३०॥