पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/२६

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के योग्य बनाने की प्रक्रिया यह थी । बाल्यावस्था में मैं भी इस प्रक्रिया में मदद किया करता था इसी से अच्छी तरह स्मरण है । चावल का मांड बना कर काग्रज़ उसमें डाल दिया जाता है-अक्सर मांड में हरताल छोड़ देते हैं––जिससे काग़ज़ का रंग सुन्दर पीला हो जाता है और काग्रज़ में कीड़े लगने की सम्भावना भी कम हो जाती है । मांड में थोड़ी देर रखने के बाद काग्रज़ धूप में फैलाया जाता है । अच्छी तरह सूख जाने पर काग़ज़ मोटा हो जाता है पर खुरखुरा इतना रहता है कि लिखना असम्भव होता है । इसका उपाय कठिन परिश्रमसाध्य होता है । एक जंगली वस्तु काली सी होती है––प्रायः किसी बड़े फल का बीज है--जिसे मिथिला में ‘गेल्ही’ कहते हैं। पीढ़े पर काग्रज़ को फैला कर इसी गेल्ही से घंटों रगड़ने से काग्रज़ खुब चिकना हो जाता है । किसी भी विद्यार्थी को इस शर्त के स्वीकार करने का साहस न हुआ । कालिदास उजड्ड तो थे ही--कहा मैं जाऊँगा । फिर मन्दिर में गया-इसका प्रमाण क्या होगा इसका यह निश्चय हुआ कि जो जाय सो स्याही लेता जाय मन्दिर की दीवार में अपने हाथ का छापा लगा आवे । कालिदास गये । पर मन्दिर के भीतर जाने पर उन्हें यह सन्देह हुआ कि दीवार में हाथ का छापा लगावें तो कदाचित् पानी के बौछार से मिट जाय । इस डर से उन्होंने यही निश्चय किया कि देवी की मूर्ति के मुंह में ही स्याही का छापा लगाया जाय तो ठीक होगा । ज्योंही हाथ बढ़ाया त्यों ही मूर्ति खिसकने लगी । कालिदास नेी छा किया । अन्ततोगत्वा देवी प्रत्यक्ष हुई और कहा ‘तू क्या चाहता है ?’भगवती के दर्शन से कालिदास की आँखें खुलीं, उन्होंने कहा——‘मुझे विद्या दो मैं यही चाहता हूँ ।’ देवी ने कहा––‘अच्छा——तू अभी जाकर रात भर में जितने ग्रन्थ उलटेगा सभी तुम्हें अभ्यस्त हो जायेंगे ।’ कालिदास ने जाकर विद्यार्थियों के तो सहज ही गुरुजी की भी जितनी पुस्तकें थीं सबके पन्ने उलट डाले । और परम पण्डित हो गये ।

दुर्बुद्धि के लिए इसी तरह यदि सरस्वतीजी की कृपा हो सो छोड़ कर और उपाय नहीं है ।

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