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पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१०१

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अभाव
 


'कीड़े के माफक रेंगकर जामो-तुम हिन्दुस्तानी!' यह कहकर गोरा यमवज्र की तरह तनकर सम्मुख खड़ा हो गया। डाक्टर ने क्रोध और वेदना से तड़पकर एक बार होंठ चवा डाला और फिर वह धैर्य धारण कर धरती पर लेट गए। उनके वस्त्र और शरीर गलीज़ कीचड़ में लतपत हो गए। उन्होंने पड़े ही पड़े पुकारा:

'लाला धनपतराय!'

धनपतराय ने द्वार खोलकर रोते-रोते कहा-ओफ! अब भी शायद बच जाए-पर क्या आपको भी उन ज़ालिमों ने कीड़े की तरह (धनपतराय डाक्टर के पैरों के पास गिरकर रोने लगे)।

डाक्टर ने कहा-धीरज! लाला धनपतराय-रोगी कहां है?-रोगी बेहोश अवस्था में था। आवश्यक उपचार करने के बाद डाक्टर ने कहा-क्या थोड़ा गर्म पानी मिल सकेगा?

'पानी, नहीं, घर में सुबह से एक बूंद भी पानी नहीं है। कुएं पर निर्लज्ज गोरों का पहरा है, वे पानी नहीं भरने देते। दो बार मैं गया पर पीटकर भगा दिया गया।'

डाक्टर ने बाल्टी हाथ में लेकर कहा-किधर है कुआं?

'आप क्या इस अपमान को सहन करेंगे?'

डाक्टर चुपचाप चल दिए।

कुएं पर पहुंचने पर ज्यों ही उन्होंने कुएं में बाल्टी छोड़ी त्यों ही एक गोरे ने लात मारकर कहा-साला भाग जाओ!

डाक्टर साहब ने तान के एक चूंसा उसके मुंह पर दे मारा। क्षण-भर में चारपांच पिशाचों ने बन्दूक के कुन्दों से अकेले डाक्टर को कुचलकर धरती पर डाल दिया।

साहस करके डाक्टर उठे और कीड़े की तरह रेंगते हुए गली के पार को चले। और किसी तरह अपने घर के द्वार पर आकर वे फर्श पर पड़ गए।

प्रभात हुआ। उनकी पत्नी ने आकर देखा, वे औंधे मुंह ज़मीन पर पड़े हैं। उसने उन्हें जगाया और उनकी इस दुरवस्था पर आश्चर्य प्रकट करते हुए संकेत से पूछा–माजरा क्या है? क्षण-भर में घर-भर वहीं मौजूद था। सैकड़ों प्रश्न उठ