पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१०३

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अभाव
 

करके कहा:

'पंजाबी नहीं, भारत का कोई भी सच्चा सपूत बताए कि उसने इस अपमान का कोई बदला लिया है? मैंने सुना है, वहां मर्दो को कीड़े की तरह रेंगकर चलाया गया था, और स्त्रियों की गुप्तेन्द्रियों में लकड़ियां डालकर उन्हें कुत्ती, मक्खी और गधी कहा गया था। अरे देश के नौजवानो! मैं पूछता हूं वे किसकी मां-बहिनें और बेटियां थीं! उन पिताओं, भाइयों और पतियों ने क्या किया है?'

भीड़ में लोग रो रहे थे। एक सिसकारी पा रही थी। शेर ने ललकारकर कहा:

'हाय! मुझे उस दिन उस स्थान पर मौत नहीं नसीब हुई? अगर मैं जानता कि पंजाब के शेर-बच्चे भी अब ऐसे बेशर्म हो गए हैं तो मैं वहीं जहर खा लेता और यहां अपना मुंह न दिखाता।'

जनता बरसाती समुद्र की तरह उथल-पुथल हो चली। बहिन-बेटियां सिसकसिसककर रो पड़ीं, और वृद्ध नररत्न तिलक की अश्रुधारा बह चली।

पंजाब केसरी का कण्ठ-स्वर कांपा। वह अब वोलने में असमर्थ होकर नीची गर्दन किए बैठ गए।

सहस्रों कंठों से ध्वनि निकली-पंजाब-केसरी की जय! हम पंजाब केसरी की आज्ञा से प्राण देने को तैयार हैं!

'स्वामी श्रद्धानन्द मारे गए।'

'क्या कहते हो?'

'अभी फोन आया है, एक मुसलमान ने उन्हें गोली से मार डाला।'

'वह पकड़ा गया है?'

'पकड़ा गया है?'

यह कहते-कहते लाला लाजपतराय उठ खड़े हुए।

इसी समय तीन-चार भद्र पुरुषों ने प्रवेश करके समाचार की सत्यता बयान करके कहा-वहां जाने की चेष्टा न करें। मार्ग अशान्त है, नगर में उपद्रव होने की आशंका है।

लालाजी धीरे-धीरे बैठ गए। विषाद के स्थान पर उनके मुख पर एक हास्यरेखा और नेत्रों में एक नई ज्योति का उदय हुआ। उन्होंने कहा:

'यह सम्भव ही नहीं कि मुझे यह मौत नसीब हो! मैं तो अब इतना बूढ़ा