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अभाव
 


'और?'

'आप देश और देश के बदनसीबों से रुपया ऐंठते हैं।'

'आह! यहां तक, और?'

'आपके कारण पंजाब लज्जित है।'

'केवल पंजाब ही न? शुक्र है!'

'आर्यसमाज आपको अपना सदस्य नहीं मानता।'

'अच्छा, मैं कल त्याग-पत्र भेज दूंगा।'

'मद्रास अछूतोद्धार के फण्ड में अब एक रुपया भी नहीं है।'

'यह लो चैकबुक, जो बैंक में है, सभी भेज दो।'

'सभी?'

'है ही कितना, पचास-साठ हजार होगा।'

'पाप खाएंगे क्या?'

'तब क्या पंजाब के घरों से मुझे रोटियां भी न मिलेंगी?'

लालाजी ने एक हास्य बखेरा और एक मोती टप से गिराया।

'अभी उस दिन तो आप एक लाख रुपये अनाथों के लिए और गढ़वाल के लिए दे चुके हैं।'

'यह उस रकम से बचा हुआ माल है।'

'आगे कैसे काम चलेगा?'

'आगे देखा जाएगा।'

'वह डेढ़ लाख अस्पताल को भी आप दे चुके हैं।'

'वह तो सब जायदाद के बेचने से हो ही जाएगा।'

'लालाजी! आपके बाल-बच्चे भी तो हैं!'

लालाजी ने कठिनता से आंसू रोककर कहा-मेरे बच्चों के ही लिए तो यह सब कुछ है।

'ओह! लालाजी, आपको वे स्वार्थी बताते हैं।'

'ठीक ही है।'

'आप देवता हैं।'

'जी चाहे जो समझ लो, परन्तु यह रुपया कल ही भिजवा देना। अब शरीर थक गया है, अपना-अपना काम संभाल लेना और युवकों का आगे बढ़ना उपयुक्त

क-६