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कलकत्ते में एक रात
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कीन ले आया।

शराब से यद्यपि मुझे परहेज़ न था, परन्तु उस समय मैंने शराब पीने से साफ इनकार कर दिया। इसपर उसने बड़े तपाक से कहा-बस, तो इसीपर आप कसम खा रहे थे। आपने अगर पहले कभी नहीं पी है, तो मैं ज़िद नहीं करती, परन्तु यदि पीते हैं, तो शौक कीजिए। गरीबों की आखिर कुछ चीज़ तो मंजूर फर्माइए।

उसने इस अंदाज से यह बात कही, और बोतल से शराब उंडेलकर मेरे मुंह में लगा दी कि मैं कुछ भी न कह सका। गले में शराब से सिंचन पाकर मैंने मन में उत्तेजना का अनुभव किया। मैं अपनी परिस्थिति को भूल गया। धीरे

जब मेरी आंख खुली, तो मैंने अपने को अपने होटल के कमरे में पलंग पर पड़ा पाया। धीरे-धीरे मैंने आंखें खोलीं। प्रातःकाल की धूप खिड़की से छनकर कमरे में आ रही थी। मेरा सिर चकरा रहा था, और शरीर में बड़ा दर्द था। कई मिनट तक मैं बिना हिले-डुले पड़ा रहा, जैसे शरीर का सत निकल गया हो। धीरे-धीरे मुझे रात की सब घटना स्मरण हो पाई। मैं हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ। पहले मुझे यह नहीं मालूम हुआ कि मैं होटल में हूं। पीछे मैंने अपने कमरे को पहचाना। सब बातें स्वप्न के समान आंखों में घूमने लगीं। सिर अब भी दर्द से फटा पड़ता था। मैं उठकर बैठ गया, और दोनों हाथों से सिर को दवाकर बैठा रहा।

मैं यहां कैसे आ गया? रात क्या मैं वहां नहीं गया था? नहीं-नहीं, सचमुच गया था। मैंने देखा, मेरे शरीर पर वही कपड़े थे, जो मैंने शाम को घूमने जाने के समय पहने थे। एकाएक मैंने देखा, मेरे हाथ की हीरे की अंगूठी गायब है। घड़ी की चेन भी नदारद है। जेब का मनीबेग भी नहीं है।

यह देखकर तो मैं बिलकुल बौखला गया। मैंने घंटी बजाई। नौकर ने आकर बताया कि आप बहुत रात गए पाए थे। आपने ज़्यादा शराब पी ली थी, इससे बदहवास हो गए थे। आपके जिन मित्र के यहां आपकी दावत थी, उनके दो नौकर आपको यहां गाड़ी पर पहुंचा गए थे।

मैंने जल्दी-जल्दी कोट बदन पर डाला, और धड़धड़ाता हुआ पुलिस-आफिस में पहुंचा। सब घटना की मैंने रिपोर्ट लिखाई। मेरा वर्णन सुनकर इंस्पेक्टर मुस्क-