वेश साधारण था। उसने गृहपति को पहचानकर कहा-लाला जी, मुझे आपसे कुछ कहना है।
देवीसिंह आज आएगा, लाला को भी उसकी प्रतीक्षा थी। उन्होंने सतर्क दृष्टि से युवक को देखकर कहा-तुम कौन हो?
'मैं देवीसिंह का सन्देश लाया हूं।'
'वे कहां हैं?'
'यह मैं नहीं बता सकता, कृपाकर क्षण-भर के लिए कृष्णा बहिन से मेरी मुलाकात करा दीजिए।'
लाला ने चुपचाप उसे गृहिणी के पास पहुंचा दिया। कृष्णा ने उसे देखा और कहा-क्या वे न आ सकेंगे?
'नहीं बहिन, यह संभव ही न रहा। उन्होंने क्षमा मांगी है और आशीष दी है।'
'वे हैं कहां?'
बालिका आशंका से पीली पड़ गई।
'निकट ही, पर देख न सकोगी!'
'क्या कैद हो गए?'
'सब कुछ हो गया, बहिन।'
'क्या हो गया? 'खुलासा कहो।'
'नहीं, आज इस समय वह बात कहने योग्य नहीं।' युवक ने बड़ी ही कठिनाई से उमड़ते हृदय को रोका।
बालिका सूख गई। उसने कहा--तुम्हें कहना होगा।
'नहीं बहिन, न कह सकूँगा।'
'कहो, कहो, मैं तुम्हें आज्ञा देती हूं।' वह रोने लगी।
युवक ने सिर झुकाकर कहा-तुम्हारी आज्ञा मैं टाल नहीं सकता बहिन, उन्हें फांसी की सजा हो गई है।
बालिका आंखें फाड़-फाड़कर देखने लगी। उसके मुंह से बोल न निकला। युवक ने दूसरी ओर मुंह फेरकर कहा:
'कल प्रातःकाल पांच बजे उन्हें फांसी होगी। आज का मंगल-कार्य समाप्त होने के ही लिए उन्होंने एक सप्ताह की अवधि ली थी।'
बालिका अब भी मुंह फाड़े खड़ी रही। वह बेंत की भांति कांपने लगी; वह मूर्छित-सी हो रही थी।