गोपाल कृष्ण गोसले। १०० जय.की महासभा-नेशनल कांग्रेसका सभापति चुना। अतएव सन् १९०५ में, आपने काशी की कांग्रेस के सभापति का आसन ग्रहस, किया । कांग्रेस पंडाल में घुसतेही चारों ओर से दर्शकों ने 'बन्दे मातरम्' और गोखले की मानन्द ध्वनिप्रारम्भ की । सभापति का शासन ग्रहण करने पर आपने जो यक्तता दी यह बहुत ही उत्तम और मनन करने योग्य है। भाप ने अपने भाषण में लाई फर्जन के राजत्व काल की आलोचना करते हुए कहा कि :-
- "काल सभी बातें उल्टी कर देता है। अब लाई कर्ज़न का भी.
राज्य काल नहीं रहा है । गत सात वर्ष तक हम उस विलक्षण मूर्ति को देख देख कर कभी चकित होते थे, कभी घबरा उठते थे, कभी क्रोध के मारे जल उठते थे, कभी दुःख से तड़फड़ाने लगते थे ; यहां तक कि अब अनुमान करना कठिन हो गया है कि हम उस मूर्ति से पार पा . गए. हैं कि नहीं। उस मूर्ति ने हमारे चित्त में औरंगजेब का समय ला दिया। लाई फर्जन ने असी की भांति योग्यता, उसी की भांति शक्ति, उसी की भांति कार्य करके, उसी के समान अपना भयानक स्वरूप दिखा कर. 'सबों को हरवा दिया ।" इसके पश्चात् आपने . लाई फर्जन की. 'बायफला कष' में दी हुई वक्तृता की आलोचना की । आपने कहा कि "लाई कर्जन के सारे काम जो लोगों के दिल में चुभ रहे.. हैं उनमें सेः बंग-भंग के कारण लोगों के हृदय पर अधिक आघात पहुंचा है। देश के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे मनुष्य ने भी लाई कर्ज़न की इस नीति. पर शोफ और दुःख प्रगट किया परन्तु उन्होंने हम लोगों के . कथन, को बहुत ही उपेक्षा की दृष्टि से देखा । महाराजा यतीन्द मोहन, सर. गुरुदास बनर्जी, राजा प्यारी मोहन, हाकर रास बिहारी घोस, महाराजा मैमन सिह, महाराजा कासिम बाज़ार, इत्यादि बड़े बड़े लोग जो. कभी. राजनैतिक झगड़े में नहीं पड़ते हैं वे भी अपनी मार्तनाद लेकर गवर्मेट. की सेवा में उपस्थित हुए; परन्तु उनकी पुकार को भी धूल में मिला. दिया गया । यदि ऐसे सज्जनों की बातें याही टाल दी. जावें, यदि सय भारतवासी प्रयोल जानवरों की तरह तुच्छ समझें जायें, तो हम केवल.