१२४ . कांग्रेस-चरिताचली। भानन्द मोहन का नवां नम्मर था । अध्यापफ लोगों को पूर्ण विश्वास था कि आप सब में प्रथम होंगे। परन्तु परीक्षा के दिनों में भापका- स्वास्थ्य कुछ ख़राब हो गया था। इसके अतिरिक्त और भी कई एक विघ्न उपस्थित हुए; नहीं तो श्राप अवश्य सयों में प्रथम रहते । परन्तु . इससे पहले और किसी भारतवासी ने विलायत जाकर इतनी उच्च परीक्षा नहीं पास की थी । आनन्द लोहन ने इस उच्च परीक्षा को पास करके अपने गौरव को नहीं बढ़ाया वरन् भातर माता के मुख को उज्वल किया। जय विलायत बालों ने सुना कि एक भारतवासी ने 'रंगलर' की उच्च परीक्षा पास की है तब वे घफित हो गए। उन लोगों को विश्वास हो गया कि भारतवासी, विद्या और बुद्धि में हम लोगों से किसी प्रभार कम नहीं हैं। एक समय स्वयं आनन्द मोहन ने अपनी वक्तृता में कहा था कि “हमें विश्वास है कि जिस ज्ञान ज्योति का प्रकाश हमारे ऋषियों के मस्तिष्क में था वह अब भी बुझ नहीं गया है । इस की भाभा अब तक हम लोगों में बनी है । यदि ठीक.ठीक उद्योग किया जाय तो ऋपियों के ज्ञान का प्रकाश पुनः हम पर पड़ कर हमें प्रकाशित कर सकता है। प्रानन्द मोहन ने स्वयं इस का उज्ज्वल दृष्टान्त दिखला दिया। केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करते समय ही भापमे बैरिस्टरी की परीक्षा का भी प्रयास किया। वैरिस्टरी की परीक्षा पास हो जाने पश्चात भाप स्वदेश लौट आए और कलकत्ता हाईकोर्ट में, घकालत करना प्रारम्भ कर दिया। थोड़े समय में ही आप, कलकत्ता हाईकोर्ट में, वाक् शक्ति, चिन्ता शीलता और कानून के अगाध ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हो गए। परन्तु भापने कभी धनोपार्जन को प्रोर अधिक ध्यान नहीं दिया। यदि भाप गणित और विज्ञान चर्चा में । अपना सारा जीवन व्यतीत करते तो आप संसार में गणित और विज्ञान . के एक असाधारण पंडित समझे जाते । यदि आप अपना सारा ममम घकालत करने में ही लगाते तो भी प्राप अवश्य ·य ही धन संचय करने में मफन होते घोर अभाधरण कानून का ज्ञान रखने वाले मनो
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