१२८ कांग्रेस-वरितायली । 4 - - एक भूत पूर्व सभापति । मुनते हैं यह पत्र प्राप का ही लिसा हुना था । आप बीमरी के करण कांग्रेस में नहीं भामफते थे इसी कारण यह... पत्र भेगा था। उस पत्र में बहुत ही महत्व की बातें और देशवासियों के प्रति फर्तव्य का उपदेश था । सब से विशेष गुण प्राप में विनय का था। हमारे यहां नीति के ग्रन्थों में लिखा भी है कि "विद्या ददाति विनयं" यह कहावत प्राप पर पूरीपूरी घटती है। अंगरेज़ी शिक्षित समाज में, श्राप के समान यिनीति, मिष्ठ भाषी, परोपकारी और साधु धरित पुरुष बहुत कम देखने में आते हैं। विलायत से लौट कर लोग अपने देश भाइयों को प्रणा की दृष्टि से देखने लगते हैं और उन्हें तुच्छ समझते हैं परन्तु इस की गंध तक भी याब शानन्द मोहन में न थी। वे अपने देश वासियों से बड़े प्रेम से मिलते थे। उनकी यथा शक्ति सहायता करते थे और उनकी हान एदि का सदैव उपाय सोचा करते थे। बाबू प्रानन्द मोहन का नाशवान शरीर शय इस जगत में नहीं है परन्तु आप को कति और गुणों का प्रकाश हो रहा है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि बाबू मानन्द मोहन के समान त्यागी, देशानुरागी पुरुष सदैव इम ‘भारत भूमि पर जन्म ग्रहण करके भारत माता के संकट के दूर करते रहैं। नोट-बाबू भानन्द नोहन का जीवन चरित. इस पुस्तक में मि० सी० शंकरन नाय्यर के बाद होना चाहिए था। परन्तु जिम समय यह पुस्तक लिखी गई उस समय प्राप नहीं प्राप्त हो सका । गतवर्ष जय आप का देहान्त हुआ तब कई एक मासिक पुस्तकों और समाचार पत्रों में, श्राप का चरित प्रकाशित हुआ। उन्ही के आधार से यह जीवनी पश्चात् लिख. कर अन्त में जोड़ दी गई है। पाठक इस त्रुटि को क्षमा करें । लेखक . - का जीवन चरित
पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१४६
दिखावट