पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१६६

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प्रयाग वापस आए। रास्ते में ही उन्हें ज्वर ही आया। मयाग में आकर उन्होंने वहुत दवा दारु की परन्तु किसी से प्राराम न हुमा। कांग्रेस-धरितावली। पंगिडत जी ने किस प्रकार उत्तम रीति से किया इस बात को कांग्रेस के नेता लोग भली भांति जानते हैं। सब लोगों को इस बात का निश्चय हो गया कि घुम माहब के याद पगिडत जी जनरल सेक्रेटरी का काम बहुत ही उत्तम रीति से चला सकेंगे। परन्तु किसी को क्या मालूम था कि हमारे युवा पण्डित जी वृद्ध धम साहब से पहले ही परलोक का अक्षय सुख पाने के लिए हम लोगों से शीघ विदा हो जायगे !! पंष्ठित अयोध्या नाघ ने जो अलौकिक देश सेवा की उसके बदले में उन्हें राष्ट्रीय-सभा का सभापति बनाया जावे इस बाबत चारों ओर से आवाजें सुनाई पड़ने लगी । इसी के अनुसार यह निश्चय हुआ कि नागपुर में जो राष्ट्रीय-सभा हो उसके सभापति पंडित जी बनाये जावे । परन्तु बम्बई और बंगाल प्रदेश को दो तीन बार यह मान प्राप्त हो चुका था; मदरास प्रान्तवासी अब तक उस मान से वंचित थे । अतएव नागपुर में किसी मदरासी सज्जन को सभापति होने का सौभाग्य प्राप्त हो और उसके बाद संयुक्त मान्तवासी कोई सज्जन सभापति बनाया जाय यह प्रस्ताव प्रबंध कारिणी सभा ने पेश किया। इस प्रस्ताव का सबसे पहले पंडित अयोध्यानाथ ने अनुमोदन किया जिसके कारण श्रीमान् मानन्द- चालू नागपुर की सभा के सभापति बनाए-गए। चालू महाशय ने जो सभा में वक्तृता दी उसमें उन्होंने स्पष्ट कहा था कि "श्रीयुत पंडित भयोध्यानाथ मदरासी नहीं हैं परन्तु आज के दिन जो यह मान इन्हों ने मदरास को दिया यह बड़ी ही उदारता की बात है। यदि यह ऐसा न करते तो हम यह बात साफ़ साफ़ कह सकते हैं कि पंडित जी सरीखे साहसी, देशहितैपी और राष्ट्रिय सभा के नेता के सामने हमारी एक भी न चलती और न हम उनके मुकाबले में ठहर सकते थे । भाज यह मान उन्हीं को प्राप्त हुना है इस में कुछ भी शंका नहीं है !" नागपूर की राष्ट्रीय सभा का काम समाप्त हो जाने पर पंडित जी मन्त ११ जनवरी सन् १८९२ ईसवी को, वे इस लोक को छोड़ परलोक