५० कांग्रेस-चरितावली । समाचार पत्र का सम्पादन करके और कालिज में शिक्षा देकर जो कुछ देशसेवा यायू सुरेन्द्रनाथ ने की उसका उल्लेख हम पीछे कर चुके हैं। इसके अलावा अन्य भागों से जो मापने देशरीया की उस का उल्लेख हम नीचे करते हैं। भारतवर्ष में अगरेज़ी शिक्षा की जिस प्रकार तरक्की होती गई उसी प्रकार लोगों के दिलों में यह इच्छा उत्पन्न हुई कि भारत के लोगों की ओर से एक प्रतिनिधि विलायती सरकार के यहां रहा करे । इसके लिए आपने सन् १८७६ में "इंडियन ऐसोसिएशन की स्थापना की। जिस दिन इस सभा की स्थापना हुई उसी दिन बाबू सुरेन्द्रनाथ का इकलौता पुत्र स्वर्गलोक पधार गया ! परन्तु इस बात की नापने कुछ भी परवाह न पी और सभा में पधारे । वहां सब लोगों के सामने आपने सभा के उद्देश्यों का वर्णन बड़ी उत्तमता के साथ किया.! भारत की सब जातियों और धर्म के लोगों को इकट्ठा करके उन में राजनैतिक विचारों को उत्पन्न करने का आप बहुत कुछ प्रयत्न करते हैं। भारत की सच्ची स्थिति का ज्ञान इंग्लंह यासियों को नहीं होता और उन्हें भारत का दुःख यताए बिना भारत का कल्याण नहीं । इस विचार से प्रापने विलायत में जापार रटिश कमेटी में भारत की वर्त- मान दशा पर बहुत से व्याख्यान दिए आपके व्याख्यान सुनकर अङ्गरेज लोग बहुत प्रसन्न हुए । भारतवासी बुद्धि और विद्या में विलायत वालों से किसी तरह कम नहीं है यह बात इङ्गलेष्टवासियों ने अच्छी तरह जान ली। राष्ट्रीय सभा में भी आप बहुत ही उत्साह के साथ काम करते हैं। इस कारण दो बार आप उसके सभापति बनाए गए । सन् १८९५ में जब कांग्रेस की बैठक पूने में हुई तय आप सभापति नियत हुए। और दूसरी बार जब सन् १९०२ में सभा अहमदाबाद में हुई तब भी आप उसके सभापति चुने गए । १८८५ में पूना के कुछ विद्यार्थियों ने आप को मानपत्र दिया उसके उत्तर में प्रापने कहा था कि "राजनैतिक काम मेरे हाथों से फितने ही हुए हों परन्तु शिक्षक के नाते से जो काम मैं करता
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