पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/३७

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काजर की कोठरी 37 रामसिंह ठीर है, मैं तुम्हारामतलव समझगया। मैं अपने असामियो ही में से बहुत जल्द किसी ऐसे आदमी का बदोबस्त करूगा। भरकस विसी औरत ही का बदोबस्त दिया जाएगा। (कुछ सोच कर) मगर मेरे यार! इस बात का खुटया मुझे हरदम लगा रहता है कि कहीं मादी तुम्हें अपने काबू में न कर ले । देना चाहिए, इस कालिख से तुम अपने पल्ले को कहा तक बचाए रहते हो। हरनन्दन मैं दावे के साथ तो नहीं कह सकता मगर नित्य सवेरे उठते ही पहिले ईश्वर से यही प्राथना करता हु वि मुझे इस बुरी हवा से बचाए रहियो। रामसिंह ईश्वर ऐसा ही करे। (आसमान की तरफ देख कर) चादल तो बेहतर घिरे आ रहे हैं। हरनन्दन हाचलो, कोठी की छत पर बैठ कर प्रकृति की शोभा देखें। रामसिंह अच्छी बात है, चलो। दोनो मित्र धीरे-धीरे बातें करते हुए कोठी की तरफ रवाना हुए। रात दो घण्टे से कुछ ज्यादे जा चुकी है। लालसिंह अपने कमरे में अकेला बठा कुछ सोच रहा है । सामने एक मोमी शमादान जल रहा है तथा कलम- दवात मोर कागज भी रक्खा हुआ है। कभी-कभी जब कुछ खयाल आ जाता है, तो उस कागज परदो-तीन पक्तिया लिख देता है और फिर कलम रख कर कुछ सोचने-विचारने लगता है। कमरे के दवजि बन्द हैं और पखा चल रहा है जिमकी डोरी कमरे से बाहर एफ खिदमतगार के हाथ मे है। यकायक पखा रुका और लालसिंह ने सर उठा फर सदर दर्वाजे की तरफ देखा। कमरे का दर्वाजा खुला और उसने अपने पसा खंचने वाले खिदमत गार को हाथ मे एक पुर्जा लिए हुए कमरे के अन्दर आते देखा। खिदमतगार ने पुर्जा लालसिंह के आगे रख दिया जिसने बहे गौर से पुर्जा पढने के बाद पहिले तो नाप-भों चढाया तथा फिर कुछ सोच-विचार कर खिदमतगार से कहा, "अच्छा, आने दे।" इतना कह उसने वह कागज जिस पर लिख रहा था उठाकर जेब में रख लिया । खिदमतगार चला गया और उसके बाद ही सूरजसिंह ने कमरे के