पृष्ठ:कामना.djvu/१२७

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कामना
 

दुर्वृत्त-वाह! चलो चलें! ए-तुम्हें परिचय देना होगा, तुम असभ्य बर्बर यहाँ किसी बुरी इच्छा से आये होगे। नागरिक! बुलाओ शान्तिरक्षक को।

सन्तोष-(हँसकर) शान्ति तुम्हारे घर कहीं है भी नो तुम उसकी रक्षा करोगे? बाबा, हम लोग जाते हैं, जाने दो।

दुर्वृत्त-परिचय देना होगा तब-

करुणा-परिचय देने में कोई आपत्ति नहीं है। मैं मृत शान्तिदेव की बहन हूँ।

(दुर्वृत्त आँख फाड़कर देखता है)

नागरिक-तब यह तुम्हारा भाई कैसे? इसमें कुछ रहस्य है।

दुर्वृत्त-तुम क्या जानो, चुप रहो। (करुणा से) हाँ, तो तुम्हारा तो बड़ा भारी अभियोग है, न्यायालय अवश्य तुम्हे सहायता देगा। क्यो, तुमने शान्तिदेव का धन कुछ पाया ? अकेली लालसा उसे नहीं भोग सकती। तुम्हारा भी उसमे कुछ अंश है।

नागरिक-हाँ, यह तो ठीक कहा-

करुणा-मुझे कुछ न चाहिये। मुझे जाने की आज्ञा दीजिये।

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