पृष्ठ:कामना.djvu/१२९

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कामना
 

दम्भ-क्यों दुर्वृत्त। क्रूर। तुम लोग अभी उत्सव में नहीं मिले।

क्रूर-कुछ कर्त्तव्य है आचार्य! यह पीड़ित है, इसकी चिकित्सा-

दम्भ-(सन्तोष को देखकर) छिः-छिः। पवित्र देवकार्य के समय तुम इस अस्पृश्य को छुओगे? (सन्तोष से) जा रे, भाग।

दुर्वृत्त-(धीरे से) यह शान्तिदेव की बहन है। उसके पास अपार धन था। इसे न्यायालय मे ले चलूँगा और क्रूर को भी इसकी चिकित्सा से कुछ मिलेगा। हम दोनों का लाभ है।

दम्भ-यह सब कल होगा। (नागरिक से) यह तुम्हारा घर है न?

नागरिक-हाँ।

दम्भ-आज इसे तुम अपने यहाँ रक्खो। कल इसकी चिकित्सा होगी। और प्रमदा! इस सुन्दरी को देवदासी के दल में सम्मिलित कर लो। इसके लिए न्यायालय का प्रबन्ध कल किया जायगा। आज पवित्र दिन है, केवल उत्सव होना चाहिये।

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