पृष्ठ:कामना.djvu/१३९

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कामना
 


स्नेह, शील का अनुरोध हम लोगो ने नहीं माना। तब अवश्य दंड के सामने सिर झुकाना पड़ेगा। कामना, हम सब तुम्हारे साथ है।

विलास-सज्जनों। सैनिकों। देश दरिद्र है, भूखा है। क्या तुम लोग इन देश-द्रोहियों के पीछे चलोगे? यह भी क्या खेल है?

विवेक-खेल था, और खेल ही रहेगा। रोकर खेलो चाहे हँसकर। इस विराट् विश्व और विश्वात्मा की अभिन्नता, पिता और पुत्र, ईश्वर और सृष्टि, सबको एक मे मिलाकर खेलने की सुखद क्रीड़ा भूल जाती है, होने लगता है विषमता का विषमय द्वंद्व। तब सिवा हाहाकार और रुदन के क्या फैलेगा? हँसने का काम भूल गये। पशुता का आतंक हो गया। मनुष्यता की रक्षा के लिए, पाशवी वृत्तियो का दमन करने के लिए राज्य की अवतारणा हो गई; परंतु उसकी आड़ मे दुर्दमनीय नवीन अपराधो की सृष्टि हुई। इसका उद्देश तब सफल होगा, जब वह अपना दायित्व कम करेगी-जनता को, व्यक्ति को, आत्मसंयम और आत्मशासन सिखाकर विश्राम लेगी। जब अपराधों की मात्रा घटेगी, और क्रमशः समूल नष्ट होगी, तब

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