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कामना

सातवॉ दृश्य

स्थान-जंगल में एक कुटी

( वृक्ष के नीचे करुणा बैठी हुई)

संतोप-(प्रवेश करके) पतझड़ हो रहा है, पवन ने चौका देने वाली गति पकड़ ली है-इसे वसन्त का पवन कहते है-मालूम होता है कि कर्कश और शीर्ण पत्रो के बीच चलने में उसकी असुविधा का ध्यान करके प्रकृति ने कोमल पल्लवो का सृजन करने का समारम्भ कर दिया है। विरल डालों मे कही-कहीं दो फूल और कहीं हरे अंकुर झूलने लगे हैं । गोधूली मे खेतो के बीच की पग- डंडियाँ निर्जन होने पर भी मनोहर है-दूर-दूर रहट चलने का शब्द कम और कृषको का गान विशेष हो चला है। इसी वातावरण में हमारा देश बड़ा रमणीय था, परंतु अब क्या हो रहा है, कौन कह सकता है । सब सुख स्वर्ण के अधीन हो गये। हृदय का सुख खो गया । पतझड़ हो रहा है।

करुणा-मानव-जीवन मे कभी पतझड़ है, कभी वसंत । वह स्वयं कभी पत्तियाँ झाड़कर एकान्त का

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