पृष्ठ:कामना.djvu/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कामना
 

दुर्वृत्त––इन्हीं सब बातों के लिए नियम की–व्यवस्था की–आवश्यकता है।

प्रमदा–जाने दो। कुछ मदिरा का प्रसंग चले। देखो, वे नागरिक आ रहे हैं।

(मद्यपान लिये हुए नागरिक और स्त्रियाँ आती हैं)

(सबका पान और नृत्य)


दूसरा दृश्य

स्थान––स्कंधावार में पट-मंडप

(कामना रानी)

कामना––प्रकृति शांत है, हृदय चंचल है। आज चाँदनी का समुद्र बिछा हुआ है। मन मछली के समान तैर रहा है, उसकी प्यास नहीं बुझती। अनंत नक्षत्र-लोक से मधुर वंशी की झनकार निकल रही है; परंतु कोई गाने वाला नहीं है। किसी का स्वर नहीं मिलता। दासी। प्यास––

(सन्तोष का प्रवेश)

कामना––कौन? सन्तोष।

सन्तोष––हाँ रानी।

९४