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पृष्ठ:कामायनी.djvu/१३६

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वह चंद्र किरीट रजत-नग स्पंदित-सा पुरुष पुरातन,
देखता मानसी गौरी लहरों का कोमल नर्त्तन।
प्रतिफलित हुई सब आँँखें उस प्रेम-ज्योति-विमला से,
सब पहचाने-से लगते अपनी ही एक कला से।
समरस थे जड़ या चेतन सुंदर साकार बना था,
चेतनता एक विलसती आनंद अखंड घना था।