पृष्ठ:कामायनी.djvu/३१

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विश्व की दुर्बलता बल बने, पराजय का बढ़ता व्यापार--
हँसाता रहे उसे सविलास शक्ति का क्रीड़ामय संचार।
शक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्त[१] विकल बिखरे हैं, हो निरुपाय,
समन्वय उसका करे समस्त विजयिनी मानवता हो जाय!"

कामायनी / 19

  1. देखिए--पादटिप्पणी, पृष्ठ 16