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पृष्ठ:कामायनी.djvu/७

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ऋषियों की तरह मिलता है । श्रद्धा वाले सूक्त में सायण ने श्रद्धा का परिचय देते हुए लिखा है, ‘कामगोत्रजा श्रद्धानामर्षिका ।' श्रद्धा काम-गोत्र की बालिका है, इसीलिए श्रद्धा नाम के साथ उसे कामायनी भी कहा जाता है । मनु प्रथम पथ-प्रदर्शक और अग्निहोत्र प्रज्वलित करने वाले तथा अन्य कई वैदिक कथाओं के नायक हैं : 'मनुर्हवा अग्रे यज्ञेनेजे यदनुकृत्येमा: प्रजा यजन्ते’ (5.1 शतपथ)। इनके संबंध में वैदिक साहित्य में बहुत-सी बातें बिखरी हुई मिलती हैं; किंतु उनका क्रम स्पष्ट नहीं है। जल-प्लावन का वर्णन शतपथ ब्राह्मण के प्रथम कांड के आठवें अध्याय से आरंभ होता है, जिसमें उनकी नाव के उत्तरगिरि हिमवान प्रदेश में पहुंचने का प्रसंग है । वहां ओघ के जल का अवतरण होने पर मनु भी जिस स्थान पर उतरे, उसे मनोरवसर्पण कहते हैं । अपीपरं वै त्वा, वृक्षे नावं प्रतिबध्नीष्व, तै तु त्वा मा गिरौ सन्त मुदकमन्तश्चैत्सीद् यावद् यावदुदकं समवायात्---तावत् तावदन्ववसर्पासि इति स ह तावत् तावदेवान्ववससर्प । तदप्येतदुत्तरस्य गिरेर्मनोरवसर्पणमिति । (8.1)

श्रद्धा के साथ मनु का मिलन होने के बाद उसी निर्जन प्रदेश में उजड़ी हुई सृष्टि को फिर से आरंभ करने का प्रयत्न हुआ । किंतु असुर पुरोहित के मिल जाने से इन्होंने पशु-बलि की—--'किलाताकुली-इति हासुर ब्रम्हावासतु: । तौ होचतु:- श्रद्धादेवो वै मनुः--आवं नु वेदावेति । तो हागत्योचतुः---मनो । बाजयाव त्वेति ।'

इस यज्ञ के बाद मनु में जो पूर्व-परिचित देव-प्रवृत्ति जाग उठी--उसने इड़ा के संपर्क में आने पर उन्हें श्रद्धा के अतिरिक्त एक

दूसरी ओर प्रेरित किया । इड़ा के संबंध में शतपथ में कहा गया है कि उसकी उत्पत्ति या पुष्टि पाक यज्ञ से हुई और उस पूर्ण पोषिता को देखकर मनु ने पूछा कि 'तुम कौन हो ?' इड़ा ने कहा,'तुम्हारी दुहिता हूं। ' मनु ने पूछा कि 'मेरी दुहिता कैसे ?' उसने कहा 'तुम्हारे दही, घी इत्यादि के हवियों से ही मेरा पोषण हुआ है ।’ ‘तां ह' मनुरुवाच —-'का असि' इति । 'तव दुहिता' इति। 'कथं भगवति ? मम दुहिता' इति । (शतपथ 6 प्र॰ 3 ब्रा॰)