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कायाकल्प]
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होता ही है। यह राग न चलेगा, भाई किसी और को फाँसो।

झिनकू—सरकार, अगर मालकिन को खुश न कर दूँ, तो नाक काट लीजिएगा। कोई अनाड़ी थोड़े ही हूँ!

खैर, तोनों आदमी मोटर पर बैठे और एक क्षण में घर जा पहुँचे। दीवान साहब ने जाकर कहा—पण्डितजी आ गये; बड़ी मुश्किल से आये हैं।

इतने में मुंशीजी भी आ पहुँचे और बोले—कोई नया आसन बिछाइएगा। कुरसी पर नहीं बैठते। आज न जाने क्या समझकर इस वक्त आ गये, नहीं तो दोपहर के पहले कोई लाख रुपए भी दे तो नहीं जाते।

पण्डितजी बड़े गर्व के साथ मोटर से उतरे और जाकर आसन पर बैठे। लौंगी ने उनकी ओर ध्यान से देखा और तीव्र स्वर में बोली—आप जोतसी हैं? ऐसी ही सूरत होती है जोतसियों की? मुझे तो कोई भाँड से मालूम होते हो! मुंशीजी ने दाँतों तले जबान दबा ली, दीवान साहब ने छाती पर हाथ रखा और छिनकू के चेहरे पर तो मुर्दनी छा गयी। कुछ जवाब ही देते न बन पड़ा। आखिर मुंशीजी बोले—यह क्या गजब करती हो, लौंगी रानी! अपने घर बुलाकर महात्माओं की यही इज्जत की जाती है?

लौंगी—लाला, तुमने बहुत दिनों तहसीलदारी की है, तो मैंने भी धूप में बाल नहीं पकाये है। एक बहुरूपिये को लाकर खड़ा कर दिया, ऊपर से कहते हैं, जोतसी है! ऐसी ही सूरत होती है जोतसी की? मालूम होता है, महीनों से दाने की सूरत नहीं देखी। मुझे क्रोध तो इन पर (दीवान) आता है, तुम्हें क्या कहूँ?

झिनकू—माता, तूने मेरा बड़ा अपमान किया है। अब मैं यहाँ एक क्षण भी नहीं ठहरूँगा। तुमको इसका फल मिलेगा, अवश्य मिलेगा।

लौंगी—लो, बस, चले ही जाओ मेरे घर से! धूर्त, पाखण्डी कहीं का। बड़ा जोतसी है, तो बता मेरी उम्र कितनी है? लाला, अगर तुम्हें धन का लोभ हो, तो जितना चाहो, मुझसे ले जाओ। मेरी बिटिया को कुएँ में न ढकेलो। क्यों उसके दुश्मन बने हुए हो? जो कुछ कर रहे हो उसका सारा दोष तुम्हारे ही सिर जायगा। तुम इतना भी नहीं समझते कि बूढ़े आदमी के साथ कोई लड़की कैसे सुख से रह सकती है! धन से बूढ़े जवान तो नहीं हो जाते।

झिनकू—माताजी, राजा साहब की आयु, ज्योतिष विद्या के अनुसार..

लौंगी—तू फिर बोला, चुपकर खड़ा क्यों नहीं रहता?

झिनकू—दीवान साहब, अब मैं नहीं ठहर सकता।

लौंगी—क्यों, ठहरोगे क्यों नहीं? दच्छिना तो लेते जाओ।

यह कहते हुए लौंगी ने कोठरी में जाकर कजलौटे से काजल निकाला और तुरन्त बाहर आ, एक हाथ से झिनकू को पकड़, दूसरे से उसके मुँह पर काजल पोत दिया। बहुत उछले-कूदे, बहुत फड़फड़ाये; पर लौंगी ने जौं भर भी न हिलने दिया, मानो बाज