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फायाकल्प]
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राजा साहब के कान में कुछ कहते थे; अनिष्ट भय से उनके प्राण सूखे हुए थे । स्टेशन के वाहर हाथी, घोड़े, वग्घियॉ, मोटर पैर जमाये खड़ी थी। जगदीशपुर का बंड बड़े मनोहर स्वरों में विजय गान कर रहा था । बार-बार सहयो कठों से हर्प-ध्वनि निकलती थो, जिससे स्टेशन की दीवार हिल जाती थीं। थोड़ी देर क लिए लोग व्यक्तिगत चिन्तायो अोर कठिनाइयों को भूलकर राष्ट्रीयता के नशे में झूम रहे थे।

ठोक दस बजे गाड़ी दूर से धुवाँ उड़ाती हुई दिखाई दो। अब तक लोग अपनी जगह पर कायदे के साथ खड़े थे; लेकिन गाड़ी के पाते ही सारी व्यवस्था हवा हो गयी। 'पोछेवाले श्रागे या पहुंचे, अागेवाले पीछे पड़ गये, झण्डियाँ रक्षास्त्र का काम करने लगों और फूलो की टोकरियाँ ढालो का । मुशी वज्रधर बहुत चीखे चिल्लाये, लेकिन कौन सुनता है । हाँ, मनोरमा के सामने मैदान साफ था । दीवान साहब ने तुरन्त सैनिको को उसके सामने से भीड़ हटाते रहने के लिए बुला लिया था। गाड़ी पाकर रुकी और चक्रधर उतर पढे । मनोरमा भी अनुराग से उन्मत्त होकर चली; लेकिन तीन-चार पग चली थी कि एक बात ध्यान में पायी। ठिठक गयी और एक स्त्री की प्राड़ से चक्रघर को देखा, एक रक्त-हीन, मलीन-मुख, क्षीण-मूर्ति सिर झुकाये खड़ी थी, मानो जमीन पर पैर रखते डर रहो है कि कहीं गिर न पड़े। मनोरमा का हृदय मसोस उठा, आँखों से नाँसुओं की धारा बहने लगी, अञ्चल के फूल अञ्चल ही में रह गये । उधर चक्रघर पर फूलों की वर्षा हो रही थी, इधर मनोरमा की आँखो से मोतियों की । सेवा-समिति का मगल गान समाप्त हुया, तो राजा साहब ने आगे बढ़कर नगर के नेताओं की ओर से उनका स्वागत किया । सब लोग उनसे गले मिले और जुलूस सजाया जाने लगा । मुशी वज्रधर जुलूस के प्रबन्ध में इतने व्यस्त थे कि चक्रधर की उन्हे सुघि ही न थी । चक्रधर स्टेशन के बाहर पाये और यह तैयारियाँ देखीं, तो बोले -ग्राप लोग मेरा इतना सम्मान करके मुझे लजित कर रहे हैं । राष्ट्रीय सम्मान किसी महान् राष्ट्रीय उद्योग का पुरस्कार होना चाहिए। मैं इसके सर्वथा अयोग्य हूँ। मुझे सम्मानित करके आप लोग सम्मान का महत्व खो रहे हैं ! मुझ जैसों के लिए इस धूम-धाम की नरूरत नहीं। मुझे तमाशा न बनाइये।

सयोग से मुशोजी वहाँ खड़े थे । ये बातें सुनी, तो बिगड़कर बोले--तमाशा नदी बनना था, तो दूसरों के लिए प्राण देने का क्यों तैयार हुए थे? लोग दस पाँच हजार खर्च करके जन्म भर के लिए राय बहादुर' और 'सॉ बहादुर' हो जाते हैं। तुम दूसरों के लिए इतनो मुसीबतें झेलकर यह सम्मान पा रहे हो, तो इसमें मरने को क्या बात है, भला! देखता तो हूँ कि कोई एक छोटा-मोटा व्याख्यान दे देता है, तो पनो में देसता है कि मेरी तारीफ हो रही है या नहीं। अगर दुर्भाग्य से कही सम्पादक ने उसकी प्रशसा न को, तो जामे से बाहर हो जाता है, और तुम दम पाँच हाथी-घोड़े देखकर घरमा गये । श्रादमो को जत प्ररने हाय है । तुम्हीं अमनो इज्जत न करोगे, ता दूसरे क्या करने लगे। श्रादमी कोई काम करता है, तो सए के लिए या नाम लिए ।