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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/१९५

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[कायाकल्प
 

गये कि दूसरी स्त्रियों ने बड़ी मुश्किल से छुड़ाया, मानो जीव देह से चिमटा हो। मरणासन्न रोगी भी अपनी विलास की सामग्रियों को इतने तृषित, इतने नैराश्यपूर्ण नेत्रों से न देखता होगा। घर से निकलकर उसकी वही दशा हो रही थी, जो किसी नवजात पक्षी की घोंसले से निकलकर होती है।

लेकिन चक्रधर के सामने एक दूसरी ही समस्या उपस्थित हो रही थी। वह घर तो जा रहे थे, पर उस घर के द्वार बन्द थे, उस द्वार में हृदय की गाँठ से भी सुदृढ़ ताले पड़े हुए थे, जिसके खुलने की तो क्या, टूटने की भी आशा न थी। नव-वधू को लिए हुए वर के हृदय में जो अभिलाषाएँ, जो मृदु-कल्पनाएँ प्रदीप्त होती हैं, उनका यहाँ नाम भी न था। उनकी जगह चिन्ताओं का अन्धकार छाया हुआ था। घर जाते थे, पर नहीं जानते थे कि कहाँ जा रहा हूँ। पिता का क्रोध, माता का तिरस्कार, सम्बन्धियों की अवहेलना, इन सभी शंकाओं से चित्त उद्विग्न हो रहा था। सबसे विकट समस्या यह थी कि गाड़ी से उतरकर जाऊँगा कहाँ। मित्रों की कमी न थी, लेकिन स्त्री को लिये हुए किसी मित्र के घर जाने के खयाल ही से लज्जा आती थी। अपनी तो चिन्ता न थी। वह इन सभी बाधाओं को सह सकते थे, लेकिन अहल्या उनको कैसे सहन करेगी? उसका कोमल हृदय इन आघातों से टूट न जायगा! उन्होंने सोचा—मैं घर जाऊँ ही क्यों? क्यों न प्रयाग ही उतर पड़ूँ और कोई मकान लेकर सबसे अलग रहूँ? कुछ दिनों के बाद यदि घरवालों का क्रोध शान्त हो गया, तो चला जाऊँगा, नहीं प्रयाग ही सही। बेचारी अहल्या जिस वक्त गाड़ी से उतरेगी और मेरे साथ शहर की गलियों में मकान ढूँढ़ती फिरेगी, उस वक्त उसे कितना दुःख होगा। इन चिन्ताओं से उनकी मुख मुद्रा इतनी मलिन हो गयी कि अहल्या ने उनसे कुछ कहने के लिए उनकी ओर देखा तो चौंक पड़ी। उसकी वियोग-व्यथा अब शान्त हो गयी थी और हृदय में उल्लास का प्रवाह होने लगा था, लेकिन पति की उदास मुद्रा देखकर वह घबड़ा गयी—बोली आप इतने उदास क्यों हैं? क्या अभी से मेरी फिक्र सवार हो गयी?

चक्रधर ने झेंपते हुए कहा—नहीं तो, उदास क्यों होने लगा? यह उदास होने का समय है, या आनन्द मनाने का?

अहल्या—यह तो आप अपने मुख से पूछें, जो उदास हो रहा है।

चक्रधर ने हँसने की विफल चेष्टा करके कहा—यह तुम्हारा भ्रम है। मैं तो इतना खुश हूँ कि डरता हूँ, लोग मुझे ओछा न समझने लगें।

मगर चक्रधर जितना ही अपनी चिन्ता को छिपाने का प्रयत्न करते, उतना ही वह और भी प्रत्यक्ष होती जाती थी, जैसे दरिद्र अपनी साख बनाये रखने की चेष्टा में ओर भी दरिद्र हो जाता है।

अहल्या ने गम्भीर भाव से कहा—तुम्हारी इच्छा है, न बताओ, लेकिन यही इसका आशय है कि तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं।

यह कहते कहते अहल्या की आँखें सजल हो गयीं। चक्रधर से अब जब्त न हो