आदमियों का रोना देख रहा था। उसने समझा, इन दोनों में मार-पीट हुई है, शायद दोनों ने एक दूसरे का गला पकड़कर दबाया है, तभी तो यों रो रहे हैं। बाबूजी का गला दुख रहा होगा। यह सोचकर उसने भी रोना शुरू किया। मुंशीजी उसे रोते देखकर प्रेम से बढ़े कि उसको गोद में लेकर प्यार करूँ तो बालक ने मुँह फेर लिया। जिसने अभी-अभी बाबूजी को मारकर रुलाया है, वह क्या मुझे न मारेगा? कैसा विकराल रूप है? अवश्य मारेगा।
अभी दोनों आदमियों में कोई बात न होने पायी थी कि राजा साहब दौड़ते हुए भीतर से आते दिखायी दिये। सूरत से नैराश्य और चिन्ता झलक रही थी। शरीर भी दुर्बल था। आते-ही-आते उन्होंने चक्रधर को गले लगाकर पूछा—मेरा तार कब मिल गया था?
चक्रधर—कोई आठ बजे मिला होगा। पढ़ते ही मेरे होश उड़ गये। रानीजी की क्या हालत है?
राजा—वह तो अपनी आँखों देखोगे, मैं क्या कहूँ। अब भगवान् ही का भरोसा है। अहा! यह शंखधर महाशय हैं।
यह कहकर उन्होंने बालक को गोद में ले लिया और स्नेहपूर्ण नेत्रों से देखकर बोले—मेरी सुखदा बिलकुल ऐसी ही थी। ऐसा जान पड़ता है, यह उसका छोटा भाई है। उसकी सूरत अभी तक मेरी आँखों में है। मुख से बिलकुल ऐसी ही थी।
अन्दर जाकर चक्रधर ने मनोरमा को देखा। वह मोटे गद्दों में ऐसी समा गयी थी कि मालूम होता था कि पलँग खाली है, केवल चादर पड़ी है। चक्रधर की आहट पाकर उसने मुँह चादर से बाहर निकाला। दीपक के क्षीण प्रकाश में किसी दुर्बल की आह असहाय नेत्रों से आकाश की ओर ताक रही थी!
राजा साहब ने आहिस्ता से कहा—नोरा, तुम्हारे बाबूजी आ गये!
मनोरमा ने तकिये का सहारा लेकर कहा—मेरे धन्य भाग! आइए बाबूजी, आपके दर्शन भी हो गये। तार न जाता, तो आप क्यों आते?
चक्रधर—मुझे तो बिलकुल खबर ही न थी। तार पहुँचने पर हाल मालूम हुआ।
मनोरमा—खैर, आपने बड़ी कृपा की। मुझे तो आपके आने की आशा ही न थी।
राजा—बार-बार कहती थी कि वह न आयेंगे, उन्हें इतनी फुरसत कहाँ; पर मेरा मन कहता था, आप यह समाचार पाकर रुक ही नहीं सकते। शहर के सब चिकित्सकों को देख चुका। किसी से कुछ न हो सका। अब तो ईश्वर ही का भरोसा है।
चक्रधर—मै भी एक डाक्टर को साथ लाया हूँ। बहुत ही होशियार आदमी हैं।
मनोरमा—(बालक को देखकर) अच्छा! अहल्या देवी भी आयी हैं? जरा यहाँ तो लाना, अहल्या! इसे छाती ने लगा लूँ।
राजा—इसकी सूरत सुखदा से बहुत मिलती है, नोरा! बिलकुल उसका छोटा भाई