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कायाकल्प]
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जब लोग खाने बैठे, तो यशोदानन्दन ने कहा- भाई, बाबूजी से जो कुछ कहना हो, कह लो; फिर मुझसे शिकायत न करना कि तुम उन्हें नहीं लाये। बाबूजी, इस घर की तथा मुहल्ले की कई स्त्रियों की इच्छा है कि आपके दर्शन करें। आपको कोई आपत्ति तो नहीं है?

वागीश्वरी-हाँ बेटा, जरा देर के लिए चले आना; नहीं तो अपने घर जाके कहोगे न कि मैंने जिन लोगों के लिए जान लड़ा दी, उन्होंने बात भी न पूछी।

चक्रधर ने शरमाते हुए कहा-आप लोगों ने मेरी जो खातिर की है, वह कभी नहीं भूल सकता। उसके लिए मैं सदैव आपका एहसान मानता रहूंगा।

ज्योही लोग चौके से उठे, अहल्या ने कमरे की सफाई करनी शुरू की। दीवार की तस्वीरे साफ की, फर्श फिर से झाड़कर विछाया, एक छोटी सी मेज पर फूलो का गिलास रख दिया, एक कोने में अगरबत्ती जलाकर रख दी। पान बनाकर तश्तरी में रखे। इन कामों से फुरसत पाकर उसने एकान्त मे बैट कर फूलों को एक माला गॅयनी शुरू की। मन में सोचती थी कि न जाने कौन हैं, स्वभाव कितना सरल है। लजाने मे तो औरतो से भी बढे हुए हैं। खाना खा चुके, पर सिर न उठाया। देखने मे ब्राह्मण मालूम होते हैं। चेहरा देखकर तो कोई नहीं कह सकता कि यह इतने साहसी होंगे।

सहसा वागीश्वरी ने आकर कहा- बेटी, दोनों आदमी आ रहे हैं। साड़ी तो बदल लो।

अहल्या 'ऊँह' करके रह गयी। हॉ, उसकी छाती में धड़कन होने लगी। एक क्षण में यशोदानन्दनजी चक्रधर को लिये हुए कमरे में आये। वागीश्वरी और अहल्या दोनो खड़ी हो गयीं। यशोदानन्दन ने चक्रधर को कालीन पर बैठा दिया और खुद बाहर चले गये। वागीश्वरी पखा झलने लगी; लेकिन अहल्या मूर्ति को भॉति खड़ी रही।

चक्रधर ने उढ़ती हुई निगाहा से अहल्या को देखा। ऐसा मालूम हुआ, माना कोमल, लिग्ध एवं सुगन्धमय प्रकाश की लहर सी आँखों मे समा गयी।

वागीश्वरी ने मिठाई की तश्तरी सामने रखते हुए कहा-कुछ जलपान कर लो भैया, तुमने कुछ खाना भी तो नहीं खाया। तुम जैसे वीरो को सवा सेर से कम न खाना चाहिए। धन्य है वह माता, जिसने ऐसे बालक को जन्म दिया! अहल्या, जरा गिलास में पानी तो ला। भैा, जब तुम मुसलमानों के सामने अकेले खड़े थे तो यह ईश्वर से तुम्हारी कुशल मना रही थी। जाने कितनी मनौतियाँ कर डालीं। कहाँ है वह माला, जो तूने गयी थी? अब पहनाती क्या नहीं?

अहल्या ने लजाते हुए कॉपते हाथों से बोला चक्रधर के गले में माला डाल दी, और आहिस्ता से बोली- क्या सिर ज्यादा चोट ती?

चक्रधर--नहीं तो; बाबूजी ने ख्वाहमख्वाह पट्टी बॅधवा दी। ।