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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/१७

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परिस्थितियों में भौतिक परिवर्तन होता है जिसे हम प्रकृतिविज्ञान की सही नापतौल की तरह आंक सकते हैं। दूसरा परिवर्तन क़ानूनी , राजनीतिक , धार्मिक , कलात्मक या दार्शनिक - संक्षेप में सैद्धान्तिक रूपों का होता है जिसमें मनुष्य संघर्ष के प्रति सचेत हो जाते हैं और निपटारे के लिए युद्ध करते हैं।

किसी व्यक्ति के बारे में हम अपनी धारणा इस बात से नहीं बनाते कि वह अपने बारे में क्या सोचता है ; इसी तरह परिवर्तन-युग को उसकी चेतना के बल पर हम नहीं परख सकते। इसके विपरीत इस चेतना की व्याख्या हम भौतिक जीवन के अन्तर्विरोधों के आधार पर करेंगे, उस विद्यमान संघर्ष के बल पर करेंगे जो समाज की उत्पादक शक्तियों और उत्पादन-संबंधों के बीच हो रहा है". "मोटे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि उत्पादन की एशियाई , प्राचीन , सामंतशाही और आधुनिक पूंजीवादी प्रणालियां समाज के आर्थिक संगठन के प्रगतिशील युग कही जा सकती हैं। (एंगेल्स के नाम मार्क्स के ७ जुलाई १८६६ के पत्र में इस उक्ति की ओर ध्यान दीजिये: "हमारा सिद्धान्त है कि उत्पादन के साधनों द्वारा श्रम- संगठन निश्चित होता है।" )

इतिहास की पदार्थवादी धारणा की खोज से, अथवा यह कहना अधिक उचित होगा कि सामाजिक घटनावली के क्षेत्र में पदार्थवाद के संगत प्रसार से , पहले के इतिहास के सिद्धान्तों के दो मुख्य दोष दूर हो गये। सबसे पहले वे सिद्धान्त बहुत से बहुत , मनुष्यों के ऐतिहासिक क्रिया-कलाप की सैद्धान्तिक प्रेरणा की छानबीन करते थे। इस सैद्धांतिक प्रेरणा के मूल स्रोत का पता लगाने की चेष्टा वे न करते थे; सामाजिक संबंधों की व्यवस्था के विकास में कौनसे वस्तुगत नियम काम कर रहे हैं, उन्हें उन्होंने न समझा था। वे यह न देख सकते थे कि सामाजिक संबंधों के रूप भौतिक उत्पादन के स्तर पर निर्भर हैं। इसके सिवा, पहले के इतिहास-शास्त्र ने जनता की कार्यवाही को अपना विषय ही न बनाया था। इसके विपरीत ऐतिहासिक पदार्थवाद से यह पहली बार संभव हुआ कि जन-जीवन की सामाजिक परिस्थितियों और उन परिस्थितियों के परिवर्तन का हम वैज्ञानिक प्रामाणिकता से अध्ययन करें। मार्क्स से पहले

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