रहते हैं, ये तथ्य सर्वविदित थे। मार्क्सवाद से इस प्रकटतः भूल-भुलैयां और शृंखलाहीनता में नियम का शासन खोज निकालने के लिए कुंजी मिल जाती है। यह कुंजी वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त है। किसी भी समाज या समाजों के समूह के सभी सदस्यों के प्रयत्नों के समन्वय के अध्ययन से ही इन प्रयत्नों के परिणाम की वैज्ञानिक व्याख्या हो सकती है। जिन वर्गों में समाज विभाजित होता है, उनकी जीवन-पद्धति और परिस्थितियों के भेद से विरोधी प्रयत्नों का उद्गम होता है। 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र में मार्क्स ने लिखा था , अब तक के विद्यमान सब समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है।" ( एंगेल्स ने बाद में जोड़ दिया था- "आदिम जन-समुदाय को छोड़ कर।") 'स्वतंत्र मनुष्य और दास , अभिजातवर्ग और साधारण प्रजा ( पेट्रीशियन और प्लेबियन ), सामन्त और कम्मी (अर्ध-गुलाम ), फ़ोरमैन और मजदूर कारीगर , संक्षेप में पीड़क और पीड़ित के बीच , तीव्र संघर्ष चलता आया है। ये दोनों वर्ग, कभी छिपे कभी प्रकट , बराबर एक दूसरे से लड़ते रहे। इस लड़ाई के अन्तस्वरूप या तो समाज के सारे ढांचे के अन्दर आमूल क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जाता , या दोनों विरोधी वर्ग बर्बाद हो जाते ... सामन्ती समाज के ध्वंस से पैदा हुए आधुनिक पूंजीवादी समाज ने वर्ग-विरोधों को ख़त्म नहीं कर दिया है। उसने केवल पुराने वर्गों के स्थान में नये वर्ग, पीड़न की नयी पद्धति , और संघर्ष के नये स्वरूप खड़े कर दिये हैं। हमारे अपने युग, पूंजीवादी युग की, दूसरे युगों की तुलना में बस यही विशेषता है कि इसने वर्ग-विरोधों को सरल बना दिया है। आज का समाज अधिकाधिक दो महान विरोधी जमातों में, एक दूसरे के खिलाफ़ सीधे खड़े पूंजीपति और सर्वहारा, दो महान वर्गों में बंटता जा रहा है। "जब से फ्रांस की महान क्रान्ति हुई है तब से यूरोप के इतिहास में हमें विभिन्न देशों के भीतरी घटनाचक्र में यही वर्ग-संघर्ष साफ़ साफ़ नज़र आ रहा है। फ्रांस में बादशाह की सत्ता की पुनःस्थापना¹⁰ के काल में कुछ ऐसे इतिहासकार भी गये थे (त्येर्री, गिजो, मिन्ये , थियेर ) जो घटनाक्रम का परिणाम निकालते हुए यह देखने के लिए बाध्य हुए कि फ्रान्स के सम्पूर्ण इतिहास को समझने की कुंजी वर्ग-संघर्ष है। वर्तमान युग में, जब
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