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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२०३

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२०० पूंजीवादी उत्पादन . ही मिलता है। इसलिए, दोनों पक्षों के सम्बंध को साफ-साफ समझने के लिए फिलहाल यह मान- कर चलना उपयोगी होगा कि अम-शक्ति का बो भी नाम से होता है, वह उसकी विक्री होने पर उसके मालिक को हर बार तुरन्त ही मिल जाता है। अब हमें यह मालूम है कि इस विचित्र माल के-पानी भम-शक्ति के-मालिक को उसका पाहक बो मूल्य देता है, वह कैसे निर्धारित होता है। प्राहक को बदले में नो उपयोग-मूल्य मिलता है, वह केवल उसके वास्तविक फलोपभोग में, यानी भम-शक्ति के उपभोग में ही प्रकट होता है। इस उद्देश्य के लिए जितनी चीखें बरी होती हैं, जैसे कच्चा माल, मुद्रा का मालिक उन सब को मन्डी में खरीद लेता है और उनके पूरे मूल्य के बराबर बाम दे देता है। मम-शक्ति का उपभोग मालों के उत्पादन के साथ-साथ अतिरिक्त मूल्य का उत्पादन भी होता है। अन्य हरेक माल की तरह श्रम-शक्ति का उपभोग भी मन्डी की सीमानों अपवा परिचलन के क्षेत्र के बाहर पूरा होता है। इसलिए हम श्रीयुत पन्नासेठ और मम-पाक्ति के मालिक को अपने साब लेकर शोर-शराबे से भरे इस क्षेत्र से, जहां हर बीच मुले-माम और सब लोगों की प्रांतों के सामने होती है, कुछ समय के लिए विदा लेते हैं और उन दोनों के पीछे-पीछे उत्पादन के उस गुप्त प्रदेश में चलते हैं, जिसके प्रवेश-भार पर ही हमें यह लिखा विताई देता है: "No admittance except on business" ("काम-कान के बिना मन्दर पाना मना है")। यहां पर हम न सिर्फ यह देखेंगे कि पूंजी किस तरह उत्पादन करती है, बल्कि हम यह भी बैलंगे कि पूंजी का किस तरह उत्पादन किया जाता है। यहाँ प्राखिर हम मुनाफा कमाने के भेद का पता लगाकर ही छोड़ेंगे। जिस क्षेत्र से हम विदा ले रहे हैं, यानी वह क्षेत्र, जिसकी सीमानों के भीतर भम-शक्ति का विक्रय और क्रय चलता रहता है, वह सचमुच मनुष्य के मूलभूत अधिकारों का स्वर्ग है। 'केवल यहीं पर स्वतंत्रता, समानता, सम्पत्ति और वैषम महाशय का राज है। स्वतंत्रता का राज इसलिए कि प्रत्येक माल के, जैसे कि श्रम-शक्ति के, प्राहक और विक्रेता दोनों केवल अपनी स्वतंत्र इच्छा के ही अधीन होते हैं। वे स्वतंत्र व्यक्तियों के रूप में करार करते हैं, और उनके बीच वो समझौता होता है, उसकी शकल में वे केवल अपनी संयुक्त इच्छा को कानूनी अभिव्यंजना देते हैं। समानता का राज इसलिए कि यहां हरेक दूसरे के साथ इस तरह का सम्बंध स्थापित . . - Oct., 1853" [' फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५३'], पृ० ३४ ।) मजदूरों द्वारा पूंजीपति को दिये जाने वाले इस उधार के एक और सुन्दर परिणाम के रूप में हम इंगलण्ड की बहुत सी कोयला-बानों में प्रचलित उस तरीके का जिक्र कर सकते हैं, जिसके अनुसार मजदूर को महीने के ख़तम होने तक मजदूरी नहीं दी जाती और इस बीच वह पूंजीपति से कर्ज लेता रहता है, जो अक्सर जिन्स की शकल में होता है, जिसके लिए खान-मजदूर को बाजार-भाव से ऊंचे दाम देने पड़ते हैं (truck-system)। "कोयला खानों के मालिकों का यह माम रिवाज है कि वे अपने मजदूरों को महीने में एक बार मजदूरी देते हैं और बीच में हर सप्ताह के अन्त में उनको कुछ पैसा नकद पेशगी देते रहते हैं। यह पैसा दुकान में दिया जाता है (यह दूकान मालिक की होती है और Tommy shop कहलाती है); वहां मजदूर एक हाथ से पैसा लेते है और दूसरे हाथ से उसे वापिस कर देते हैं।" ("Children's Employment Commission, 3rd Report" ['बाल-रोजगार-कमीशन की तीसरी रिपोर्ट'], London, 1864, पृ० ३८, अंक १९२)